चित्रकूट : जिले के हरिजनपुर गांव में रहने वाली 'पाठा की शेरनी' नाम से विख्यात रामलली ने लगातार वारदातें कर रहे डेढ़ लाख के इनामी डाकू गौरी यादव से ग्रामीणों की रक्षा के लिए अपनी बंदूक निकाल ली है. रामलली ने कहा है कि अगर गौरी यादव की बंदूक आग उगलेगी तो मेरी भी बंदूक दूध नहीं, बल्कि आग ही उगलेगी. यह आग उसके शरीर में जाकर ही शांत हो सकेगी.
कौन है पाठा की शेरनी
बात 17 मई साल 2001 की है, जब पाठा में डाकू गैंग ने सतना के बैंक मैनेजर जगन्नाथ तिवारी के 24 वर्षीय बेटे मनीष का अपहरण कर लिया. डाकू युवक को हरिजनपुर लेकर आए. किसी तरह युवक ने खुद को छुड़ाया और भागकर रामलली की टूटी-फूटी झोपड़ी में आ पहुंचा. युवक को घबराया देख रामलली ने उससे उसका हाल पूछा. तभी युवक ने रामलली को 'मम्मी मुझे बचा लो' कह कर रोने लगा और पूरी कहानी बताई. युवक की कहानी जानकर रामकली को उस पर दया आ गई. उसने तय किया वह दोबारा युवक को डाकू को नहीं सौंपेगी. रामलली ने गांव के आसपास की महिलाओं को मनाया और डाकुओं से लड़ने के लिए तैयार किया. करीब 25 से 30 की संख्या में हथियारबंद डाकुओं ने रामलली के घर धावा बोलकर युवक को वापस करने को कहा. इस पर रामलली को कुछ नहीं सूझा. वह हाथों में हंसिया और कुल्हाड़ी लेकर डाकू पर दौड़ते हुए कूद पड़ी.
इस तरह पड़ा 'पाठा की शेरनी' नाम
रामलली को डाकुओं से लड़ता देख महिलाओं ने भी उन पर पत्थर बरसाना शुरू कर दिया. इसके बाद डाकू वापस बीहड़ में भाग गए. इस घटना के बाद रामलली चर्चा में आई. साथ ही उस वक्त रामलली अखबारों की सुर्खियों में छा गई. तत्कालीन जिलाधिकारी जगन्नाथ ने इस सराहनीय कार्य के लिए 6 दिसंबर 2001 को रामलली को एक लाइसेंस बंदूक उपहार में देकर सम्मानित किया और उनके साथ ही ग्रामीणों को बंदूकों के लाइसेंस मुहैया कराए. साथ ही रामलली को 'पाठा की शेरनी' नाम से भी नवाजा, जिसके बाद आज भी उसके घर के दरवाजे पर पाठा की शेरनी नाम खुदा हुआ है.