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चित्रकूट: आदिवासी बच्चों के बीच जल रही शिक्षा की लौ, संस्कार और आपसी सामंजस्य बढ़ाने पर जोर

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान ने दो दिवसीय बाल महोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया. बाल महोत्सव के अवसर पर आदिवासी इलाकों में रहने वाले बच्चों में संस्कार और आपसी सामंजस्य को बढ़ावा देने के लिए यह आयोजन किया गया.

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दो दिवसीय बाल महोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया है.

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Published : Nov 27, 2019, 12:25 PM IST

चित्रकूट: जिले में मानिकपुर पाठा क्षेत्र में बाल महोत्सव का अवसर था. पाठा क्षेत्र में एक स्वयंसेवी संस्था द्वारा मानवीय चेतना से संपन्न मूल्याधारित शिक्षा का अभियान चलाया जा रहा है. संस्था का मानना है कि आदिवासी इलाकों में रहने वाले बच्चों में संस्कार और आपसी सामंजस्य को बढ़ावा देने की आवश्यकता है. दो दिवसीय बाल महोत्सव कार्यक्रम में बच्चों को खेलकूद के साथ में नैतिक शिक्षा, संस्कार और बच्चों में छिपी प्रतिभा को निखारने का प्रयास किया गया.

दो दिवसीय बाल महोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया है.
भारतीय समाज सेवा संस्थानआज के भौतिक काल की सारी अव्यवस्थाओं की जड़ मानव है. इसी संकल्प के साथ स्वयंसेवी संस्था के 36 केंद्रों में 2500 बच्चे संस्कार प्राप्त कर रहे हैं. अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान द्वारा आयोजित दो दिवसीय बाल महोत्सव कार्यक्रम में प्रत्येक शिक्षा केंद्रों के 10-10 बच्चों को 200 की संख्या में मानिकपुर संस्थान केंद्र में एक नए संसार का आभास कराया गया. जहां कार्यक्रम की शुरुआत सभी केंद्रों से आए एक आदिवासी बच्चों ने मां सरस्वती को फूल चढ़ा कर दीप प्रज्ज्वलित के साथ कार्यक्रम की शुरुआत की.इसे भी पढ़ें-जन कल्याण संस्था की अनोखी पहल, मरीजों के साथ तीमारदारों को मुफ्त भोजन और साड़ी

छोटी सी उम्र में अपने ग्रामवासियों की चिंता
गीत संगीत भाषण नृत्य कला खेल आदि की गतिविधियों के माध्यम से इन छोटे-छोटे बच्चों ने यह सिद्ध कर दिया कि उन्हें जो कला है वह तमाम शहरों में महंगे विद्यालयों के बच्चों से कहीं ज्यादा है. आदिवासी इलाके में रहने वाले बच्चे प्रकृति के सानिध्य में होते हैं. इन्हें अवसर मिले तो यह देश का नाम प्रत्येक क्षेत्र में ऊंचा कर सकते है. छोटी सी उम्र में ग्रामवासियों की चिंता करने वाले बच्चों ने अपने भाषण में गांव की समस्याओं का जो चित्र खींचा वह रोंगटे खड़ा कर देने वाला था. बच्चों ने बताया कि रोजगार के बिना उसके गांव के लोगों को दर-दर भटकना पड़ता है. बच्चों को भी गांव छोड़ कर बाहर जाना पड़ता है.

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बच्चों का हो जाता है पढ़ाई से मोह भंग
आदिवासी इलाके में रहने वाले बच्चों के परिवार वाले काम पर जाते समय उनको अपने किसी नजदीक के रिश्तेदारों के हवाले कर देते हैं. अभिभावकों के पास न होने और सही तरीके से देख रेख न होने के चलते बच्चों का पढ़ाई से मोह भंग हो जाता है और आगे की शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते है. वहीं कई गृहिणियां ऐसी हैं जो गरीबी के चलते अपने बड़े बच्चों या पड़ोसी के सहारे छोड़ कर मजदूरी करने सुबह से ही चली जाती हैं. ऐसे में ये संस्था द्वारा नियुक्त बाल-सखी इन बच्चों का पूरा ख्याल रखती हैं. बच्चों को गीत, संगीत, खेल, कूद के माध्यम से पढ़ाई की तरफ प्रेरित करेगी, जिससे यह बच्चे आकर्षित होकर विद्यालय आए और खेल-खेल में ही नैतिक शिक्षा संस्कार और अपनी स्कूल की पढ़ाई भी करते रहें.

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