चित्रकूट: भगवान श्री राम की तपोस्थली चित्रकूट में दीपावली का एक विशेष महत्व है. पौराणिक काल से ही लोग मिट्टी के दीप जलाकर राजा राम की अयोध्या वापसी की खुशी मनाते हैं. आधुनिक युग में इन दीपों की चमक चाइनीज लाइटों और मोमबत्ती की चमक के आगे फीकी पड़ती जा रही है.
मिट्टी के बर्तनों का कारोबर छोड़ कुम्हार अब अन्य कार्यों की ओर कर रहे पलायन. मिट्टी के बर्तन बनाने वालों की घटी संख्या
तंगहाली की मार झेल रहे इन दीप को बनाने वाले प्रजापति समाज के लोग अब इस रोजगार से दूरियां बना रहे हैं. साल दर साल मिट्टी के बर्तन बनाने वालों की संख्या घटती जा रही है. आधुनिक समय में मिट्टी से बने सामानों की खरीदारी करने वालों की संख्या में कमी आ चुकी है. सिर्फ दीपावली के विशेष मौके पर ही कुम्हारों को रोजगार मिल पाता है.
चाइनीज झालरों ने बुझाई दीपों की रोशनी
भगवान श्रीराम की साधना स्थली चित्रकूट में पहले लोग मिट्टी के बर्तन इस्तेमाल करते थे और दीपावली पर मिट्टी के दीये से अपने घर के सजाते थे. अब चाइनीज झालरों, मोमबत्ती और दीये के आ जाने से लोग अपेक्षाकृत सस्ते और आकर्षक चाइनीज (चीन) के बने सामानों को इस्तेमाल करने लगे हैं, जिससे कुम्हारों की हालत भी खराब होने लगी है. जिले के कुम्हारों के हालात यह हो गए हैं कि वे आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं. मजबूरन उन्हें मिट्टी के दीये और बर्तन बनाने का व्यवसाय छोड़कर मजदूरी या दूसरा कोई व्यवसाय करना पड़ रहा है.
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नहीं मिलते उचित दाम
मिट्टी के न मिलने व मिट्टी की कीमत में लगातार वृद्धि हो जाने से उनके व्यवसाय में काफी असर पड़ रहा है. ऐसे में किसी तरह मिट्टी का इंतजाम करके परिवार के सभी लोग मिलकर मिट्टी के दीये, खिलौने और बर्तन बनाते हैं, लेकिन उनकी कीमत भी आज के दौर में निकालना मुश्किल हो रहा है. दिवाली के त्योहार पर उनके मिट्टी के दिये कोई नहीं खरीद रहा, अगर बिक भी रहा है तो बहुत कम दामों में. त्योहार के बाद 12 माह उनके पास कोई काम नहीं रहता क्योंकि अब चाय की दुकान पर उनके हाथ के बने सकोरे (कुल्हड़) भी लोग ज्यादा नहीं ले रहे हैं. डिस्पोजल के गिलास में दुकानदार लोगों को चाय पिला रहे हैं.
कुम्हारों ने बयां किया अपना दर्द
दीपावली से पहले ईटीवी भारत ने चित्रकूट के खिचड़ी गांव में पहुंचकर कुम्हारों का दर्द जाना. इस गांव में दर्जनों की तादाद में कुम्हार के परिवार रहते हैं, जो कि मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते हैं. वहीं कुम्हारों ने अपना दर्द बयान करते हुए कहा कि हमारा परिवार कई पुश्तों से मिट्टी के बर्तन बनाने का कार्य करते चले आ रहा है. पहले आसानी से मिट्टी मिल जाती थी, जिसके चलते कई प्रकार की मिट्टी के बर्तन बना लेते थे और बाजार में बेंच देते थे. अब मिट्टी की किल्लत के कारण बाजारों में चाइनीज समान के आगे उनकी बिक्री नहीं हो रही है, जिससे इस व्यवसाय से उनका मोहभंग होता जा रहा है और उनके आगे की पीढ़ी इस काम को छोड़ रही है.