चित्रकूटः भले ही लोग उजाले का त्योहार दिवाली पर दीपक जलाकर मनाने की तैयारी में जुटी हैं, लेकिन इन दीपकों को बनाने वाले कुम्हार समाज के लोग आज उदास हैं. क्योंकि इनके मिट्टी से गढ़े दीपकों की मांग आए दिन आधुनिक समाज में घटती जा रही है. आज पूरे परिवार मिलाकर काम करते हैं, लेकिन इनकी 1 दिन की आय मात्र 250 रुपये तक ही सीमित होकर रह जाती है. वजह आधुनिक समाज में बढ़ते प्लास्टिक और आर्टिफिशियल रोशनी के संसाधनों ने मिट्टी के दीपकों की जगह ले ली है.
राम से जुड़ा है रामघाट
भगवान श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट में दिवाली का विशेष महत्व है. मान्यता के अनुसार राम लंका विजय के बाद सर्वप्रथम चित्रकूट आए थे और रामघाट पर भरत ने राम का स्वागत दिवाली मनाकर किया था. तब से लगातार रामघाट में लाखों श्रद्धालु दीपदान कर दिवाली मनाते आ रहे हैं. रोशनी और उजाले का पर्व दिवाली त्योहार को लेकर घरों में विशेष तैयारियां होती हैं. वहीं दीपक बनाने के कारोबार में जुड़े इन कुम्हारों के परिवार में मायूसी छाई है.
कुम्हारों के घर छाई मायूसी
दरअसल आधुनिकता के इस दौर में मिट्टी से बने दीपक की जगह आर्टिफिशियल लाइट्स और मोमबत्ती ने ले ली है. कुम्हार या प्रजापति कहलाने वाले इस समाज के ज्यादातर लोग मिट्टी के दीपक बनाने से लेकर तमाम तरह के बर्तन बनाने का कारोबार करते हैं. मिट्टी के काम से जुड़े प्रजापति समाज के लोगों को विशेष रूप से ध्यान में रखकर सरकार ने इन्हें जमीन के पट्टे से लेकर आधुनिक चाक की व्यवस्था की घोषणा के बाद कुम्हारों में इस व्यापार से कुछ उम्मीद जागी थी, लेकिन समय से योजना का लाभ न मिलने से इस रोजगार से जुड़े युवा अब पलायन कर महानगरों का रुख कर रहे हैं.