बुलंदशहरःमई 1999 से जुलाई 1999 के बीच देश ने पाकिस्तान के साथ कश्मीर के करगिल में जंग लड़ी. करीब 3 महीनों तक चली लड़ाई के बाद कारगिल युद्ध में अपने अदम्य साहस और जांबाजी के बल पर दुश्मन के छक्के छुड़ाने चार सैनिको को सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. उनमें से एक हैं ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव. मूलरूप से बुलंदशहर के रहने वाले योगेंद्र सिंह यादव ने करगिल युद्ध के दौरान न सिर्फ तोलोलिंग पहाड़ी को पाकिस्तानियों से छीनने में अपनी वीरता दिखाई बल्कि मशहूर टाइगर हिल पर भी 15 गोली खाने के बाद भी अपना जौहर दिखाया. 21 साल बाद भी उन्हें लड़ाई का मंजर याद है, इसे लेकर उन्होंने ईटीवी भारत संवाददाता श्रीपाल सिंह तेवतिया से खास बातचीत की.
करगिल युद्ध के दौरान 19 साल के योगेंद्र सिंह यादव 18 ग्रेनेडियर में तैनात थे. करगिल के तोलोलिंग पहाड़ी पर पाकिस्तानियों ने कब्जा जमा लिया था. उसे छुड़ाने का जिम्मा बारी-बारी कई टीमों ने संभाला था, जिनको पहाड़ की चोटी पर बैठे पाकिस्तानियों ने निशाना बना डाला. 20 मई को तोलोलिंग पर कब्जा करने का अभियान शुरू हुआ. 22 दिन की लड़ाई में नायब सूबेदार लालचंद, सूबेदार रणवीर सिंह, मेजर राजेश अधिकारी और लेफ्टिनेंट कर्नल आर. विश्वनाथन की टीमों ने बारी-बारी धावा बोला था. मगर यह प्रयास असफल रहा.
12 जून 1999 को 18 ग्रेनेडियर और सेकंड राइफल ने अटैक किया. योगेंद्र सिंह यादव इस टीम का हिस्सा बने. गजब की जंग हुई और तोलोलिंग फतेह के बाद जीत का सिलसिला शुरू हो गया. 13 जून को इस टीम ने 8 चोटियों पर कब्जा किया. आदेश के बाद उनकी टीम वापस लौट गई. फिर आगे की लड़ाई का जिम्मा संभाला जम्मू कश्मीर राइफल ने, जिसको विक्रम बत्रा लीड कर रहे थे.
क्षमता से मिली थी घातक प्लाटून में जगह
योगेंद्र बताते हैं कि तोलोलिंग फतह के दौरान घातक प्लाटून के कई जवान शहीद हो गए थे. इसलिए जब 17 हजार फुट ऊंचे टाइगर हिल के लिए को छुड़ाने की प्लानिंग शुरू हुई तो बेहतर योद्धाओं की तलाश हुई. तोलोलिंग पर जीत के बाद योगेंद्र सिंह यादव और उनके 3 साथियों को लड़ाई लड़ रहे सैनिकों तक राशन पहुंचाने का जिम्मा सौंपा गया था. इसके लिए उन्हे घंटों पैदल चलना होता था. उनकी शारीरिक क्षमता को देखते हुए उन्हें घातक प्लाटून में जगह मिल गई.
पहले दो रात और एक दिन की चढाई...फिर लड़ाई
फिर बारी आई टाइगर हिल फतेह करने की. 2 रात और एक दिन कठिन चढ़ाई के बाद 7 जवान तीसरी रात टाइगर हिल पर चढ़ गए और वहां मौजूद दुश्मनों को खत्म कर बंकर पर कब्जा कर लिया. मगर दूसरी पहाड़ी के दुश्मनों ने 5 घंटे तक ताबड़तोड़ गोलाबारी की. जब गोली-बारूद खत्म होने लगा तो योगेंद्र यादव और उनकी टीम ने रणनीति बदल दी.
बचने की उम्मीद नहीं थी तो उन्होंने दुश्मनों की तादाद कम करने की रणनीति बनाई. फायर बंद की तो पत्थरों से छिपे 10-12 पाकिस्तानी बाहर आ गए. सबने एक साथ फायरिंग शुरू कर दी. अचानक से 35-40 पाकिस्तानी पहुंच गए और उन्होंने फायरिंग शुरू कर दी.
7 हिंदुस्तानियों ने इनका बहादुरी से मुकाबला किया मगर जबरदस्त गोलीबारी के कारण घिरते चले गए. सूबेदार मेजर योगेंद्र यादव समेत सभी भारतीय सैनिक लहूलुहान हो चुके थे. दुश्मनों ने पहले ग्रेनेड से उन पर हमला किया था, फिर पास आकर सबको गोली मार दी. लहूलुहान योगेंद्र के सामने उनके कई साथी धराशायी हो गए. ग्रेनेड के हमले में उनका कंधा भी टूट गया. हाथ में ताकत नहीं रही. बंकर से जाते-जाते पाकिस्तानियों ने फिर से उनके शरीर में गोलियां दागी. पाकिस्तानी सैनिकों ने सबके शरीर पर बूट से ठोकर मारकर मौत को कन्फर्म किया.
मगर सिक्कों ने किया कमाल, बचाई योगेंद्र की जान
जब पाकिस्तानी भारतीय फौजियों को गोलियों से भून रहे थे तब जमीन पर जख्मी पड़े योगेंद्र ने मौत से लड़ने का संकल्प ले लिया. जीती हुई पोस्ट को बचाने के लिए यह भी गजब की जिद थी. योगेंद्र ने ठान लिया था अगर सिर और दिल में गोली नहीं मारी तो अंतिम सांस तक लड़ेंगे और अपनी प्लाटून तक टाइगर हिल के बारे में जानकारी पहुंचा दें.