बुलंदशहर : सरकार स्वच्छ भारत योजना पर करोंड़ों रुपये खर्च कर रही है, पर इसकी हकीकत कुछ और ही है. जिले को नवंबर 2018 में ओडीएफ यानी खुले में शौच मुक्त जिला घोषित कर दिया गया है, लेकिन आज भी लोग खुले में शौच जाने को मजबूर हैं. वहीं अधिकारी जांच करने की बात कह रहे हैं.
खुले में शौच जाने को मजबूर ग्रामीण. जिम्मेदार अधिकारियों ने जिले को खुले में शौचमुक्त करने के लिए डेडलाइन तय की थी, जो 2 अक्टूबर 2018 की थी. हालांकि जिम्मेदार अफसरों ने सिर्फ अपना वादा निभाने के इरादे से जल्दबाजी में नवंबर 2018 में बुलंदशहर को ओडीएफ घोषित कर दिया. जिले को ओडीएफ घोषित किया गया था, तब से लगातार ईटीवी भारत ओडीएफ की सच्चाई की पड़ताल कर रहा है और हर बार जिम्मेदार अधिकारी खुद को सुरक्षित बचाकर जांच कराने का आश्वासन भी कैमरे के सामने देते दिखे.
इस बार भी ईटीवीभारतने पड़ताल की तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. जिले में जो शौचालय बनाए गए हैं, वो मानक के मुताबिक नहीं हैं. वहीं गांव के लोग इसका प्रयोग गोदाम के तौर पर कर रहे है. यह नजारा एक, दो या तीन शौचालयों का नहीं, बल्कि कई घरों का है. वहीं ग्रामीणों का कहना है कि मानक के मुताबिक न होने पर उन्होंने शौचालयों को सिर्फ घर के जरूरी सामान रखने के लिए उपयोग में लेना शुरू कर दिया है. शौचालय पूरे जिले के हर पात्र के घर में बने भी नहीं हैं.
नियमानुसार पहले गांवों में प्रधान अपने स्तर से शौचालय निर्माण कराते थे, बाद में सरकार से आवंटित पैसा प्रधान और पंचायत सेक्रेटरी के माध्यम से लाभार्थी के सीधे खाते में पहुंचाते थे. शौचालयों का पूरी तरह से अब तक भी निर्माण नहीं हो सका. ईटीवीभारतने जब ग्रामीणों से इस बारे में बात की तो मामला कुछ और ही निकला. कुछ लोग तो सरकार से शौचालय के लिए दी जानी वाली रकम को ही अपर्याप्त बताया.
पंचायती राज विभाग के अधिकारी अमरजीत सिंह का कहना है कि जहां शिकायतें मिल रही हैं, वहां जांच कराई जा रही है. डीपीआरओ का कहना है कि खुले में शौच को जाने वाली प्रथा काफी लंबे समय से चली आ रही है और इसे एकदम से अमल में लाने में दिक्कते आ रही हैं. लोगो को जागरूक करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं स्वच्छताग्राही बनाए गए हैं, जो ऐसे लोगों को जागरूक कर रहे हैं.