बुलंदशहर: स्याना कोतवाली क्षेत्र में पिछले साल 3 दिसम्बर को भड़की हिंसा में काफी बवाल हुआ. इसमें न सिर्फ पुलिस चौकी पर तोड़फोड़, पथराव या आगजनी हुई, बल्कि ड्यूटी पर तैनात स्याना कोतवाली प्रभारी सुबोध कुमार सिंह और स्थानीय युवक सुमित की जान भी गई थी. तब से लेकर अब तक क्षेत्र में सब कुछ सामान्य नहीं है. चिंगरावठी गांव को इस हिंसा का सबसे ज्यादा खामियाजा उठाना पड़ा. ईटीवी भारत की टीम ने चिंगरावठी गांव पहुंचकर वहां के हालात को जानने की कोशिश की.
चिंगरावठी गांव से ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्ट. बुलंदशहर हिंसा के दौरान जो तांडव हुआ था उसकी गूंज यूं तो देश भर में सुनी गई थी. इलाके में कई महीनों तक पुलिस की गाड़ियों का शोर हर तरफ सुना गया. आलम यह था कि कई लोग अपने घरों को छोड़कर उसी वक्त चले गए थे. इस हिंसा में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार और एक युवक सुमित की जानें भी गईं. इस हिंसा के दौरान भीड़ ने ऐसा हंगामा किया कि चिंगरावठी की गलियां अभी भी खामोश बनी हुई हैं.
ईटीवी भारत की टीम ने लिया जायजा
ईटीवी भारत की टीम ने जब चिंगरावठी गांव का रुख किया तो ग्रामीणों ने बताया कि इस हिंसा ने उन्हें काफी पीछे कर दिया. पुलिस चौकी के समीप होने की वजह से गांव का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ. ग्रामीणों का मानना है कि जब पुलिस चौकी पर हंगामा हो रहा था, तो चौकी के नजदीक होने की वजह से तमाशबीन की तरह गांव के लोग भी वहां पहुंच गए और हिंसा के बाद पुलिस ने कार्रवाई करते हुए जिन 27 नामजद और 60 अज्ञात हिंसा के आरोपियों को गिरफ्तार किया, उनमें सबसे ज्यादा चिंगरावठी के ही लोग थे.
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वहीं गांव के ही प्रकाशवीर का कहना है कि इस हिंसा के बाद गांव काफी पीछे चला गया, यहां का विकास थम गया, सारे काम बंद हो गए. साथ ही उन्होंने बताया कि सुमित की हत्या के बाद यहां के नौजवान काफी परेशान थे. वहीं ग्रामीणों ने सरकार से गुजारिश करते हुए कहा कि सरकार अगर सभी मामले वापस ले ले तो जीवन फिर से सुधर सकता है, नहीं तो गांव का भविष्य बेहद खराब होने वाला है. वहीं ग्रामीणों का यह भी कहना है कि चिंगरावठी गांव में कोई भी शख्स किसी हिंदूवादी संगठन से ताल्लुक नहीं रखता.
अभी भी सुनसान हैं चिंगरावठी की गलियां
ग्रामीण जयकरन कहते हैं कि करीब 6 महीने तक पूरा गांव सुनसान था, घर खाली थे, गलियों में नन्हे बच्चे या फिर सिर्फ बुजुर्ग और महिलाएं ही शेष बची थीं. गांव के बुजुर्ग परशुराम ने बताया कि लोगों ने पुलिस की पकड़ से दूर रहने के लिए छिपने की कोशिशें की थीं. वहीं गांव ही में स्कूल चलाने वाले कपिल का कहना है कि एक साल हो गया है. इस पूरे साल में गांव के किसी भी युवा का कहीं सरकारी नौकरी में सेलेक्शन तक नहीं हुआ.
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फिलहाल एक साल बीत जाने के बाद अभी भी कई सवालों के जवाब नहीं मिल पाए हैं. हालांकि इस दौरान जो लोग जेल गए, उनमें से 40 की जमानत हो चुकी है, जबकि 4 अभी भी जेल में हैं. इस समय जेल में कैद प्रशांत नट, जॉनी, लोकेंद्र चिंगरावठी गांव के ही हैं, जबकि राहुल निकट के ही हरवानपुर गांव का रहने वाला है. इन चारों पर इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की हत्या का आरोप लगा है, जबकि बाकी सभी आरोपियों पर लूट, बलवा, आगजनी आदि के तहत धाराएं लगाई गई थीं. फिलहाल ग्रामीण मानते हैं कि अभी भी गांव पूरी तरह से हिंसा की तपिश से बच नहीं पाया है.