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बस्ती: उपेक्षाओं की शिकार हिन्दी साहित्य के युग प्रवर्तक आचार्य रामचंद्र शुक्ल की विरासत

यूपी के बस्ती जिले में स्थित है हिन्दी साहित्य के युग प्रवर्तक आचार्य राम चन्द्र शुक्ल की जन्मभूमि अगौना. जिले के बहादुरपुर ब्लाक के अगौना गांव में वर्ष 1884 की शरद पूर्णिमा को उनका जन्म हुआ था. उनके नाम पर यहां धर्मशाला, पुस्तकालय, वाचनालय, शोध भवन तो बनवा दिए गए. लेकिन आज वह सब प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार है.

हिंदी के पुरोधा का पुस्तकालय खुद किताबों का मोहताज.

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Published : Aug 13, 2019, 7:34 AM IST

बस्ती: जनपद की पहचान और अगौना के लाल आचार्य राम चन्द्र शुक्ल खुद अपनी ही धरती पर उपेक्षा के शिकार हैं. यहां सहित्यकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल के नाम पर लाइब्रेरी तो बना दी गई, लेकिन वह आज अराजक त्तत्वों का अड्डा बन चुकी है. हिंदी के पुरोधा का पुस्तकालय खुद एक किताब का मोहताज है. पूर्व प्रधानाचार्य कृष्ण प्रसाद मिश्र ने बताया कि इस मामले में कई बार सांसद हरीश द्विवेदी से कहा गया, लेकिन उनसे आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला.

हिंदी के पुरोधा का पुस्तकालय खुद किताबों का मोहताज.

हिंदी के पुरोधा का पुस्तकालय खुद किताबों का मोहताज

  • आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी को उस दौर में पुष्पित और पल्लवित किया था जब देश में विदेशी भाषा का प्रभाव था.
  • उनका जन्म बस्ती जनपद के बहादुरपुर ब्लाक के अगौना गांव में वर्ष 1884 में शरद पूर्णिमा की तिथि को हुआ था.
  • आचार्य रामचंद्र शुक्ल पिता चंद्रबली शुक्ल सरकारी कर्मचारी थे.
  • गांव में आचार्य शुक्ल के नाम पर धर्मशाला, पुस्तकालय, वाचनालय, शोध भवन की स्थापना उसी जगह हुई है जहां उनका पैतृक आवास था.
  • लेकिन अब सब कुछ पूरी तरह उपेक्षित है.
  • गांव में वर्ष 1983 में आचार्य शुक्ल के नाम पर गांव में बालिका इंटर कॉलेज की स्थापना की गई थी.
  • वहीं अब हाल यह है कि उनके नाम पर स्थापित पुस्तकालय में पुस्तक ही नहीं है.

सरकार की तरफ से न कभी कोई कार्यक्रम किया जाता है और न ही किसी प्रकार की सरकारी मदद की जाती है. प्रशासन ने वर्ष 1983 में आचार्य शुक्ल के नाम पर गांव में बालिका इंटर कॉलेज की स्थापना कर इस गांव की तरफ साहित्य प्रेमियों का ध्यान आकृष्ट किया था. तत्कालीन मंडलायुक्त ने गांव में आचार्य शुक्ल के नाम पर पुस्तकालय, वाचनालय का शिलान्यास किया. वहीं तत्कालीन जिलाधिकारी देवेंद्र त्रिपाठी ने भवन का उद्घाटन किया था. लेकिन साहित्य अध्ययन में कोई प्रगति नहीं हुई है. सांसद से लेकर किसी विधायक ने कभी कोई मदद नहीं की.
-डॉक्टर कृष्ण प्रसाद मिश्र, पूर्व प्रधानाचार्य और पुस्तकालय संरक्षक

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