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बस्ती मेडिकल कॉलेज में भर्ती घोटाले का खुलासा, डीजी ने शासन को भेजा कार्रवाई के लिए पत्र

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Published : Oct 29, 2019, 10:04 AM IST

उत्तर प्रदेश के बस्ती मेडिकल कॉलेज में कर्मचारियों की भर्ती का आज खुलासा हो गया है. यूपी डीजी केके गुप्ता ने एक पत्र लिखकर आउट सोर्स कंपनी के घोटाले की पुष्टि हुई है.

बस्ती मेडिकल कॉलेज

बस्ती: जिले के मेडिकल कॉलेज में 'आउट सोर्सिंग' के जरिए 175 स्टाफ नर्स, लैब टेक्निशियन सहित अन्य पदों की भर्ती के मामले में 'माननीयों' की सिफारिश बेकार जाने वाली है. इस मामले में सबसे अधिक नुकसान 'माननीयों' का ही हुआ. एक तो सिफारिशी पत्र वायरल होने से बदनामी हुई, ऊपर से जिन लोगों की सिफारिश की गई उनकी भी भर्ती नहीं हुई.

जानकारी देते बस्ती मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल.

ईटीवी भारत को यूपी के डीजी केके गुप्ता का वह पत्र हाथ लगा है, जिसमें आउट सोर्स कंपनी के घोटाले की पुष्टि हुई है. उसके मुताबिक शासन कभी भी मानव की आपूर्ति करने वाली एजेंसी के अनुबंध को निरस्त कर सकती है और उसे ब्लैक लिस्टेड कर सकती है. शासन की ओर से यह कार्रवाई मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल और महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण की रिपोर्ट के बाद होने जा रही है.

एजेंसी का अनुबंध निरस्त होने के बाद धन वसूली करने वालों के असली चेहरे सामने आएंगे और धन वापसी की मांग होने लगेगी. इसके लिए काफी हद तक शासन की उन नीतियों को जिम्मेदार माना जा रहा है, जिसमें मुख्यालय पर ही एजेंसी निर्धारित करनी है. कहा भी जा रहा है कि जब नियुक्ति स्थानीय मेडिकल कॉलेज में हो रही है तो स्थानीय लोगों और स्थानीय एजेंसी के द्वारा होनी चाहिए थी.

डीजी ने पत्र के जरिए घोटाले की पुष्टि की.

मानव की आपूर्ति करने वाली और शासन द्वारा नियुक्त शहरी आजीविका केंद्र पर छह हजार से अधिक 'वेल क्वालीफाइड' लोगों का पंजीकरण है और इस केंद्र द्वारा मेडिकल कॉलेज में मानव की आपूर्ति की भी जा रही है. बावजूद मानव आपूर्ति उनसे नहीं कराई गई. आवेदकों से रजिस्ट्रेशन के नाम पर 590 रुपये वसूले गए और जिले में 170 पदों के लिए 16,000 बेरोजगारों ने फॉर्म भरा. यानी कंपनी ने 94 लाख का सीधे गबन किया है.

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मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. नवनीत कुमार का कहना है कि उन्होंने शासन को रिपोर्ट भेज दी है. अब कार्रवाई होनी बाकी है. स्टाफ नर्स सहित अन्य की कमी के चलते कैली चिकित्सालय का कार्य बाधित हो रहा है. उन्होंने कहा कि पर्याप्त संख्या में टाइपिस्ट न होने के कारण उन्हें महत्वपूर्ण लेटर को खुद या फिर अपने सहयोगी से टाइप कराना पड़ रहा है.

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