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बस्ती: 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की कहानी कहता है चमत्कारी राजकोट का मंदिर

उत्तर प्रदेश के बस्ती में 9 अप्रैल 1858 को कर्नल राक्राप्ट के नेतृत्व में राजा उदय प्रताप नारायण सिंह के नगर किले को ध्वस्त कर दिया गया था. मान्यता है कि किले में एक माता का एक मंदिर भी था. खोजबीन के बाद ध्वस्त किले में माता की पिंडी प्राप्त की गई.

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Published : Mar 12, 2020, 7:48 AM IST

temple in the demolished fort.
ध्वस्त किले में माता की पिंडी.

बस्ती: जनपद मुख्यालय से 15 किलोमीटर पर स्थित नगर बाजार में शहीद राजा उदय प्रताप नारायण सिंह के ध्वस्त किले में मौजूद मां दुर्गा का मंदिर आज भी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 की कहानी कहता है. मान्यता है कि किला ध्वस्त होने के कुछ साल बाद कुछ लोगों को स्वप्न आया, जिसमें माता दुर्गा ने वहां अपने होने की बात कही. इसके बाद वहां पिंडी मिली और बाद में मंदिर का निर्माण किया गया. इस मंदिर को लोग राजकोट की माता के नाम से जानते हैं.

ध्वस्त किले में माता की पिंडी.

दिल्ली के बादशाह ने 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी लड़ाई
दिल्ली के बादशाह ने 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ जब लड़ाई का आह्वान किया तो राजा उदय प्रताप सिंह भी इस जंग में कूद पड़े थे. अपने बहनोई अमोढा नरेश राजा जालिम सिंह की सलाह पर उदय प्रताप सिंह ने जलमार्ग सरयू नदी के तट पर अपने सैनिकों को तैनात कर दिया और रास्ता रोक दिया. इसके बाद फैजाबाद की तरफ से गोरखपुर की तरफ जा रहे अंग्रेज सैनिकों की नाव पर धावा बोलकर उनके अधिकारियों को मार दिया.

कर्नल राक्राप्ट के नेतृत्व में नगर किले पर आक्रमण
इन्हीं में से किसी तरह एक अंग्रेज सैनिक अपनी जान बचाकर गोरखपुर पहुंचा. इस घटना के बाद अधिकारियों ने 29 अप्रैल 1858 को कर्नल राक्राप्ट के नेतृत्व में नगर किले पर आक्रमण कर दिया. अंग्रेजी सेना ने किले से एक किलोमीटर दूर एक गांव के पास अपना बेड़ा लगाया. इसके बाद किले को बारूद व तोपों से ध्वस्त कर दिया. बाद में कुछ लोगों ने गद्दारी करके राजा उदय प्रताप को गिरफ्तार करा दिया. गिरफ्तार राजा पर गोरखपुर में केस चला और अंग्रेज अधिकारियों के हत्या के जुर्म में फांसी की सजा दी गई, लेकिन अंग्रेजों के हाथ मौत मिले यह उन्हें गवारा नहीं था. फांसी के एक दिन पहले बैरक के बाहर तैनात संतरी से राइफल छीनकर उन्होंने आत्महत्या कर ली.

राजा उदय प्रताप के किले में माता का एक मंदिर
मान्यता है कि राजा उदय प्रताप के किले में माता का एक मंदिर भी था. अंग्रेजों के हमले में किला ध्वस्त होने के साथ वह भी ध्वस्त हो गया. कुछ साल बाद स्थानीय लोगों को मां दुर्गा का स्वप्न आया कि जहां किला ध्वस्त हुआ वहां वह विराजमान हैं. मंदिर के पुजारी गिरीश महाराज ने बताया कि स्वप्न की बात लोगों के बंगाली बाबा से कही, जिसके बाद उन्होंने अपने शोध से पता लगाया. खोजबीन के बाद ध्वस्त किले में माता की पिंडी मिली. बाद में यहां एक मंदिर का निर्माण हुआ. पुजारी जी ने बताया कि राजकोट की माता गौतम क्षत्रिय वंश की कुलदेवी हैं.

नवरात्र और दशहरे के मौके पर भारी भीड़
पुजारी ने कहा कि इस मंदिर को लेकर लोगों मे बड़ी आस्था है. यहां सच्चे मन से जो भी भक्त अपनी मुराद लेकर आता है, राजकोट की माता उसकी मुराद पूरी करती हैं. उन्होंने बताया कि नवरात्र और दशहरे के मौके पर यहां बहुत भीड़ होती है, दूर-दूर से भक्त माता का दर्शन करने आते हैं.

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