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बस्ती: काकोरी एक्शन डे पर क्रांतिवीर पिरई खां को लोगों ने किया याद

यूपी के बस्ती जनपद के लाल पिरई खां भारतीय जंग-ए-आजादी आंदोलन के महान योद्धा थे. उनकी एक आवाज पर हजारों लोग निकल पड़ते थे. ब्रिटिश सेना के साथ उनकी अगुवाई में हुए सशस्त्र संघर्ष को 'महुआ डाबर एक्शन' के नाम से जाना जाता है. आज पिरई खां की याद में बहादुरपुर ब्लॉक के पूरा पिरई गांव में समारोह का आयोजन कर उन्हें याद किया गया.

क्रांतिवीर पिरई खां को किया गया याद.
पिरई खां भारतीय जंग-ए-आजादी आंदोलन के महान योद्धा थे.

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Published : Aug 9, 2020, 9:18 PM IST

बस्ती :जनपद के लाल पिरई खां भारतीय जंग-ए-आजादी आंदोलन के महान योद्धा और 1857 स्वतंत्रता संग्राम के विरासत की थाती हैं. उनकी एक आवाज पर हजारों लोग निकल पड़ते थे. ब्रिटिश सेना के साथ उनकी अगुवाई में हुए सशस्त्र संघर्ष को 'महुआ डाबर एक्शन' के नाम से जाना जाता है. आज पिरई खां की याद में बहादुरपुर ब्लॉक के पूरा पिरई गांव में समारोह का आयोजन कर उन्हें याद किया गया.

पिरई खां भारतीय जंग-ए-आजादी आंदोलन के महान योद्धा थे.

दरअसल, क्रांतिकारी पिरई खां कुशल सैनिक और युद्धनीति में माहिर शख्स थे. उनके नेतृत्व में गुरिल्ला क्रांतिकारी लाठी-डंडे, तलवार, फरसा आदि चलाने में माहिर थे. 10 जून 1857 को मनोरमा नदी पार कर उन्होंने क्रांतिकारियों के साथ अंग्रेज अफसरों पर धावा बोल दिया. इस दौरान लेफ्टिनेंट लिंडसे, लेफ्टिनेंट थामस, लेफ्टिनेंट इंगलिश, लेफ्टिनेंट रिची, लेफ्टिनेंट काकल और सार्जेंट एडवर्ड की मौके पर मौत हो गई थी. तोपची सार्जेंट बुशर जान बचाकर किसी तरह भागने में सफल रहा. उसने ही घटना की जानकारी वरिष्ठ अफसरों को दी.

पिरई खां भारतीय जंग-ए-आजादी आंदोलन के महान योद्धा थे.

इस क्रांतिकारी घटना से ब्रिटिश सरकार हिल गई थी. भारतीय शहीद मेमोरियल ट्रस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. विद्याराम विश्वकर्मा ने बताया कि 'महुआ डाबर एक्शन' के बाद फिरंगी सरकार ने 20 जून 1857 को पूरे जिले में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया था. इसके बाद महुआ डाबर नामक गांव को बड़ी बेदर्दी से आग लगवा करके जलवा दिया था. इस गांव का नामो-निशान मिटवा कर ‘गैरचिरागी’ घोषित कर दिया. उनके घर-बार, खेती-बाड़ी, रोजी-रोजगार तथा परिवार सब के सब खत्म हो चुके थे. वहां पर अंग्रेजों के चंगुल में आये निवासियों के सिर कलम कर दिये गये थे. इतना ही नहीं, क्रांतिकारी नेताओं का भेद जानने के लिए गुलाम खान, गुलजार खान पठान, नेहाल खान पठान, घीसा खान पठान व बदलू खान पठान समेत तमाम क्रांतिकारियों को 18 फरवरी 1858 को सरेआम फांसी दे दी गई थी.

पिरई खां भारतीय जंग-ए-आजादी आंदोलन के महान योद्धा थे.

डॉ. विश्वकर्मा ने इन सशस्त्र लड़ाका पुरखों की याद में स्मारक बनाने की मांग की. ‘महुआ डाबर एक्शन’ के बाद पिरई खान भूमिगत होकर देश की आजादी के लिए काम करते रहे. क्रांतिवीर पिरई स्मृति समारोह के लिए देश-विदेश के नामी शख्सियतों और विद्वानों ने लिखित श्रद्धांजलि भेजी है. इनमें महामहिम राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, गुजरात के डीजीपी डॉ. विनोद कुमार मल्ल, अंतर्राष्ट्रीय चित्रकार अशोक भौमिक, वरिष्ठ दस्तावेजी फोटो पत्रकार सुनील दत्ता, प्रसिद्ध नाट्य निर्देशक अनिल रंजन भौमिक, मुम्बई के कस्टम आयुक्त सुनील कुमार मल्ल, समेत तमाम लोग शामिल हैं.

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