बस्तीःसरकार और जिला प्रशासनभले ही कोरोना मरीजों को इलाज को लेकर आल इज वेल का दावा कर रहा हो लेकिन जिले में जमीन हकीकत इसके विपरीत है. हकीकत यह है कि बस्ती मेडिकल कॉलेज मरीज बिना सोर्स के भर्ती नहीं किए जा रहे हैं. जबकि अंदर बेड खाली है और बाहर मरीज तड़प रहे हैं. महर्षि वशिष्ठ मेडिकल कॉलेज से संबद्ध कैली हॉस्पिटल 350 बेड का है लेकिन 200 बेड ही संचालित किया जा रहा है. पांच वार्डों में लगे डेढ़ सौ बेड ताले में कैद हैं.
मरीजों को भर्ती करने की प्रक्रिया जटिल
प्रधानाचार्य की मनमानी का आलम यह है कि कैली हॉस्पिटल में ईएमओ को कोविड के मरीज भर्ती करने के लिए अनुमति लेनी होती है. यह प्रक्रिया इतनी लंबी है कि इसमें कोरोना के गंभीर मरीज बेड के इंतजार में सुबह से शाम तक बाहर ही पड़े रह जाते हैं. जबकि अस्पताल के वार्ड में खाली हैं. बेड खाली रहने के बाद भी हॉस्पिटल में मरीजों को जगह पाने के लिए सांसद, विधायक के अलावा अफसरों से सिफारिश करानी पड़ रही है. मेडिकल कॉलेज हो या जिला अस्पताल, जहां कोरोना के मरीज भर्ती किए जा रहे हैं, वहां 48 घंटे ऑक्सीजन का बैकअप रखने का शासनादेश है. लेकिन बस्ती के मेडिकल कॉलेज में प्रतिदिन की डिमांड के अनुसार ही ऑक्सीजन चिकित्सकों को नहीं मिल पा रहा है.
मेडिकल कॉलेज को आवश्यकता से कम मिल रहे ऑक्सीजन सिलेंडर
चिकित्सकों की मानें मेडिकल कॉलेज में कोविड के 100 से अधिक मरीज भर्ती हैं. इनके लिए प्रतिदिन पांच सौ आक्सीजन सिलेंडर चाहिए, लेकिन मेडिकल कॉलेज में 495 सिलेंडर ही हैं. ऑक्सीजन की कमी न हो इसके लिए नायब तहसीलदार और लेखपाल की ड्यूटी मगहर में ऑक्सीजन प्लांट पर लगाई गई है. दो वाहन मय चालक सिलेंडर लाने और ले जाने के लिए लगाए गए हैं. जैसे ही पचास सिलेंडर खाली होते हैं, गाड़ी दौड़ा दी जाती है. एक सिलेंडर में 7.84 घनमीटर गैस होती है. सामान्य मरीज के लिए एक सिलेंडर पर्याप्त है. डॉक्टरों के अनुसार कोरोना के गंभीर मरीज के लिए चार से पांच सिलेंडर लग जाते हैं.