बस्ती: छोटे से गांव से निकलकर अमेरिका की राजनीति में सक्रिय होना और कई पदों पर रहना अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है. ऐसा ही कारनामा कर दिखाया है बस्ती की बेटी रीती बरनवाल ने जो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार में परमाणु ऊर्जा विभाग की प्रमुख हैं. रीती बस्ती के बहादुरपुर गांव की रहने वाली हैं.
हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के साथ उनकी भी भारत दौरे पर आने की चर्चा थी, लेकिन वो नही आईं. आज पूरे क्षेत्र में रीता बरनवाल महिलाओं के लिए एक मिसाल बनकर सामने है.
कौन हैं रीता बरनवाल
रीता बरनवाल के पिता कृष्ण चन्द्र बरनवाल चार भाई थे. रीता के पिता कृष्ण चन्द्र बरनवाल ने आईआईटी खड़गपुर टॉप किया और 1968 में वे पीएचडी करने के लिए अमेरिका चले गए. पीएचडी कम्पलीट करने के बाद उन्होंने वहीं पर प्रोफेसर की नौकरी ज्वाइन कर ली.
शादी के बाद वे अपनी पत्नी को भी अमेरिका लेकर चले गए, जहां पर उनको तीन बेटियां हुईं. बड़ी बेटी रीता ने एमआईटी से पदार्थ विज्ञान एंव अभिांत्रिक विषय के साथ ग्रेजुएशन पास किया, उसके बाद मिशिगन विश्वविद्यालय से पीएचडी की. रीता को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के प्रस्ताव पर जून 2019 में प्रमाणु ऊर्जा विभाग के प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया.
एक भारतीय महिला होने के कारण ये हमारे देश के लिए भी गौरव की बात है. रीता बरनवाल उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं जो कुछ बनना चाहती हैं, कुछ करना चाहती हैं और समाज को ये बताना चाहती हैं कि हम भी किसी से कम नहीं हैं.
बस्ती के गांव बहादुरपुर में रहते हैं परिवार के लोग
बहादुरपुर गांव में आज भी रीता बरनवाल के परिवार के लोग रहते हैं. रीता की दादी जानकी बरनवाल जो की काफी बुजुर्ग हैं, उम्र लगभग 90 साल होगी. रीता बरनवाल का नाम लेते ही अपनी पोती को याद करके उनकी आंखों में आंसू आ गए. उन्होंने कहा की हमारे बड़े देवर की बेटी है.
हमारे देवर कृष्ण चन्द्र बरनवाल हर तीन साल पर घर आते थे और अपनी बेटी को भी साथ लाते थे. उनको अपने गांव से बहुत लगाव था, जब वो घर आते थे तो गांव के ही अंदाज में ढल जाते थे. खाना पीना सब गांव के हिसाब से खाते थे. सब लोग जब घर पर इक्ट्ठा होते थे तो खूब मनोरंजन होता था. हम लोग गाना गाते थे, खेलते थे, साथ में खाना खाते थे, उन लोगों ने मुझे मां का दर्जा दिया, जब वो अमेरिका जाते थे तो हम लोग एक साथ फोटे खिंचवाते थे.
रीता बचपन में भी किताबों को ही ज्यादा समय देती थी. जब रीता बड़ी हो गई तो हमारे देवर कहने लगे की अब लड़कियां गांव नहीं जा पाएंगी. उनकी पढ़ाई-लिखाई चल रही थी, जिसके बाद हमारे बड़े देवर कृष्ण चन्द्र बरवनवाल की तबीयत ठीक नहीं रहती थी, जिसकी वजह से उन का भी आना जाना छूट गया और कुछ साल पहले उन की मौत हो गई.
दादी का कहना है कि, एक गांव की बेटी होने के बावजूद अमेरिका जाकर अपने देश का नाम रोशन किया. इस बात का हमे गर्व है. मैं चाहती हूं कि हमारे परिवार और क्षेत्र की भी बेटियां रीता की तरह बनें और नाम रोशन करें.
परिजनों का कहना है कि, रीता बरनवाल 2008 में आखरी बार घर पर आई थी. उन्होंने कई बार रीता को घर आने के लिए फोन पर कहा तो उन्होंने कहा कि गर्मी में भारत आएगी तो गांव पर जरूर आएंगी.
रीता के चचेरे भाई ने एक पत्र भी लिखा है जिसमे उन्होंने गांव पर आमंत्रित किया है और जिले के लिए कुछ करने की बात कही है. परिजनों ने कहा कि ये हमारे देश के लिए गर्व की बात है कि रीता अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ काम करती हैं. उन्होंने जिस तरह से तरक्की की है और अमेरिका में जिस पोस्ट पर हैं, उस से देश का मान बढ़ा है. रीता बरनावा की शादी 21 नवम्बर 1998 में पीटर से शादी हुई थी. इनकी शादी हिंदू और क्रिश्चियन रीती रिवाज के साथ सम्पन्न हुई थी.
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