बस्ती: जनपद में कंक्रीट के बढ़ते दायरे में हरियाली सिमटती जा रही है. विकास के नाम पर पेड़ काटे जा रहे हैं, जिसका नतीजा यह हुआ कि वन क्षेत्रफल मात्र 3000 हेक्टेयर (दो फीसदी से कम) रह गया है. इसका सबसे बड़ा कारण लोगों का पर्यावरण के प्रति जागरूकता की कमी है. साथ ही सरकारी तंत्र की पर्यावरण के प्रति उदासीनता भी है. इतना ही नहीं, विकास के नाम पर अंधाधुंध पेड़ों की कटाई के बाद पर्यावरण के नाम पर पौधरोपण योजना मात्र फोटो सेशन तक सिमट कर रह गई है.
सिमटती जा रही हरियाली
दरअसल, विकास की अंधाधुंध दौड़ में हरियाली गायब होती जा रही है. हर साल जनपद में लाखों पौधे लगाए जाते हैं, लेकिन इस कवायद के बाद भी बस्ती में वनक्षेत्र लगातार घट रहा है. जिले में कुल भौगोलिक क्षेत्र का दो प्रतिशत से भी कम हरियाली क्षेत्र है, जो तय मानक से करीब 28 फीसदी कम है. विकास की अंधी दौड़ और बढ़ते प्रदूषण ने हरियाली को खासा नुकसान पहुंचाया है. नुकसान की भरपाई के लिए सरकार हर साल करोड़ों पौधे लगवाती है, लेकिन देखभाल के अभाव में ये पौधे हरे-भरे नहीं रह पाते.
तापमान में लगातार हो रही वृद्धि
अगर गौर करें तो हम लगातार हरियाली के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. इस बाबत किसान डिग्री कॉलेज के भूगोल विभागाध्यक्ष डॉक्टर आनन्द कुमार ने बताया कि वन की जो परिभाषा है, उसके मानक के अनुसार तो बस्ती में वन कुछ भी नहीं है. वन की परिभाषा यह है कि धरती पर सूर्य का प्रकाश नहीं आना चाहिए. बस्ती जिला पूरा का पूरा सरयू पार मैदान में है. यहां पर वन क्षेत्र कम है और इसकी कमी के चलते तमाम समस्याएं आती हैं. तापमान में वृद्धि हो रही है. प्रदूषण बढ़ रहा है, क्योंकि पेड़ों की कमी से कार्बन डाई ऑक्साइड ज्यादा प्रोड्यूस हो रहा है. इन सबसे यहां के मौसम पर असर पड़ा है.
पर्यावरण के प्रति लोगों को करना पड़ेगा जागरूक
डॉक्टर आनन्द कुमार ने बताया कि बस्ती में गर्मी ज्यादा बढ़ गयी है. इतना ही ठंड में भी कमी आई है. इस तरह का मौसम मैदानी इलाकों में पाया जाता है. उन्होंने बताया कि आज से 50 साल पहले जितना हरित क्षेत्र था, अब वो नहीं है. उन्होंने कहा कि खासकर शहरी क्षेत्र में किचन गार्डन के प्रति लोगों को जागरूक करना होगा. सरकार हर साल करोड़ों पौधे लगवाती है, लेकिन उसके बाद फॉलोअप नहीं होता कि पौधे किस स्थिति में हैं.