बस्ती:जनपद का ऐतिहासिक धरोहर के रूप में पहचाना जाने वाला चंदो ताल 30 सालों से अतिक्रमण की चपेट में है. 17 सौ एकड़ में फैला यह ताल कभी पूर्वांचल में प्रवासी पंछियों का पसन्दीदा स्थल माना जाता था. छह माह यहां साईवेरियन पंछियों का निवास स्थान रहता था, लेकिन वन विभाग और प्रशासन की उपेक्षा के चलते ताल का अस्तित्व खतरे में है. भूमाफियों ने इसके काफी हिस्से पर अपना कब्जा जमा लिया है, लेकिन प्रशासन अभी कब्जा हटा नहीं पाया है.
चंदो ताल को प्रशासन नहीं करा पाया अतिक्रमण मुक्त सुखने की कगार पर चंदो ताल
नेशनल वेटलैंड के रूप में पहचाने जाने वाला चंदो ताल सफाई के अभाव के कारण सुखने की कगार पर है. जगह-जगह अतिक्रमण और जलकुंभी ने अपना जाल बिछा लिया है. फिलहाल 35 लाख रुपये से इस ताल का जीर्णोद्धार कराया जा रहा है. 50 हेक्टेयर से जलकुंभी और जलीय घासों को हटाने का अभियान शुरू कर दिया है, लेकिन यह नाकाफी है.
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ताल में करोड़ों रुपये की आवश्यकता
करीब 15 किलोमीटर वर्ग एरिया में फैले इस ताल में करोड़ों रुपये की आवश्यकता है. पक्षी विहार के इंचार्ज अरविंद ने बताया कि ताल के कुछ हिस्से पर काश्तकारों का कब्जा है. उन्होंने बताया कि अभी पोकलैंड से ताल की खुदाई कराई जा रही थी, जिसको काश्तकारों ने आपत्ति करके रुकवा दिया. काश्तकारों का कहना है कि यह उनकी जमीन है.
रिपोर्ट मिलने पर आगे की कार्रवाई
डीएफओ नवीन शाक्य ने कहा कि चंदो ताल को जब आवंटित किया गया था, तो इसके संरक्षण के लिए एक कमेटी भी गठित की गई थी, जिसका काम था कि वह सर्वे करके इसका सीमांकन करें. साथ ही उन्हाेंने कहा कि अभी कमेटी की रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई है. रिपोर्ट मिलने पर आगे की कार्रवाई की जाएगी.