बरेली: उत्तर प्रदेश के बरेली में जरी जरदोजी का काम बड़े पैमाने पर किया जाता है. बरेली के कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहां अधिकतर घरों में जरी का काम करके अपने परिवार का पालन पोषण किया जाता है, मगर पिछले कुछ समय से जरी कारीगरों का काम पटरी से उतरता नजर आ रहा है. जानकारी के मुताबिक बरेली जिले में लगभग तीन लाख से अधिक जरी कारीगर हैं, जिनकी आमदनी का एकमात्र सहारा जरी जरदोजी ही है. जो मुम्बई दिल्ली जैसे शहरों के बाजारों से मिलने वाले जरी के काम को करते हैं. इतना ही नहीं, विदेशों से भी जरी का काम बरेली के जरी कारीगरों को मिलता था पर कोरोना संक्रमण के चलते जरी कारीगरों को मिलने वाला काम पहले की अपेक्षा बहुत कम हो गया है.
बाहर से काम की मांग हुई कम
जरी का काम करने वाले जहीर कारीगर बताते हैं कि लॉकडाउन के बाद बाहर की मंडियों से मिलने वाला काम न के बराबर रह गया है. इतना ही नहीं कोरोना संक्रमण से पहले दिल्ली मुंबई सहारनपुर की बड़ी मंडियों से जरी कारीगरों को काम बड़े पैमाने पर काम जरी का मिलता था और उस काम को बरेली के जरी कारीगर कर के मोटा मुनाफा कमाते थे, पर काफी लंबे समय से जरी का काम बहुत कम हो गया और जरी कारीगरों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो रहा है.
आर्थिक संकट से जूझ रहे है जरी कारीगर खाली बैठे हैं जरी कारीगरजरी कारीगरों के काम की हालत खराब होती जा रही है, पर कोरोना संक्रमण के चलते लगे लॉक डाउन ने जरी कारीगरों की कमर तोड़ कर रख दी है. जरी कारीगरों की मानें तो जिस कारखाने में पहले 10 से 15 कारीगर काम करते थे अब वहां दो या तीन कारीगर ही काम कर रहे हैं और उनको भी हर दिन काम नहीं मिलता. जिसके चलते जरी कारीगर खाली बैठे है. अगर काम मिलता भी है तो उसकी मेहनत का पैसा पहले की अपेक्षा आधा भी नहीं मिलता, जरी कारीगर इमरान बताते हैं कि पहले जिस सूट की कढ़ाई करने के बदले हजार रुपए मिलते थे, आज मंदी के दौर में 300 रुपये से 400 रुपये में काम करना पड़ रहा है. जरी के कारीगर आम दिनों में 400 रुपये से लेकर 500 रुपये प्रतिदिन कमा लेते थे. आजकल 200 कमा पाना भी मुश्किल है.मंदी ने बाद बदला कामकारीगर बताते हैं कि जरी के काम की मांग कम होने की वजह से कारीगर अपना परिवार पालने के लिए जरी कारीगरी के काम को छोड़कर दूसरे कामों की तरफ रुख करना शुरू कर चुके हैं. किसी ने कारपेंटर के साथ काम करना शुरू कर दिया तो कोई सब्जी और फलों की रेहड़ी लगा कर परिवार को पाल रहा है.
25 सालों से काम कर रहे बुजुर्ग शहीद अहमद बताते हैं कि इन दिनों जरी कारीगरों की जितनी हालत खराब है, ऐसे हालात उन्होंने कभी नहीं देखे. जरी कारीगरों के सामने काम ना होने के चलते परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होती जा रही है और उनका पालन पोषण करना मुश्किल हो रहा है.
जरी का कारखाना चलाने वाले जहीर बताते हैं कि वह पिछले 15 सालों से जरी कारीगरी का काम करते हैं, और उनके कारखाने में हमेशा 10 से 12 कारीगर काम करते थे और माल भरा रहता था पर लॉकडाउन के बाद जरी का काम पूरी तरह से चौपट हो गया है. उनके पास अब काम नहीं है. इतना ही नहीं अब उनके कारखाने में दो या तीन कारीगर ही काम करते हैं.
वहीं, जरी जरदोजी पर सर्वे करने वाले बरेली कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर कोमल मित्तल बताती हैं कि इस वक्त जरी कारीगरों की हालत बहुत ज्यादा खराब है, क्योंकि कोरोना संक्रमण के बाद जरी के कपड़ों की मांग कम हुई है. जरी के कपड़ों की डिमांड कम होने से जरी कारीगरों की हालत खराब हो रही है. कारीगरों के पास बाहर के व्यापारियों का काम नहीं आ रहा है. जो आ रहा है वो न के बराबर है.