बरेली: जिले में रामलीला के मंचन का एक पुराना इतिहास है. यहां पर बरसों से रामलीला होती आ रही है, जिसमें पुरुष वर्ग की भागीदारी शुरू से रही है. वहीं अब धीरे-धीरे महिलाओं ने भी रंगभूमि में अपना जौहर दिखाना शुरु कर दिया है. जिले के अंदर बहुत सारी ऐसी रामलीला है, जहां महिलाओं की भागीदारी सबसे ज्यादा होती है. वहीं बहुत सारे ऐसे पात्र भी हैं जो महिलाएं खुद निभाती हैं.
जिले में होने वाली रामलीला में मंचन कर जिले की महिला रंगकर्मियों ने मिथक तोड़ दिया है. वह न सिर्फ रामलीला के मंच का नया दौर विकसित कर रहीं, बल्कि नारी सशक्तीकरण का संदेश भी दे रहीं हैं. साथ ही साथ रामलीला के माध्यम से कुछ मुस्लिम कलाकार एकता का संदेश भी दे रहे हैं. उन्हीं में से एक हैं दानिश खान जो कई सालों से राम का किरदार निभा रहे हैं.
बरेली में रामलीला में मुस्लिम कलाकारों ने नाट्य कर पेश की एकता की मिसाल. महिलाएं भी बनती हैं रामलीला का हिस्सा
कई जगह पढ़ा और सुना है कि महिलाओं को पवित्रता का हवाला देकर रामलीला के पात्रों की भूमिका नहीं निभाने दी जाती थी. उस सोच कि पाबंदी को तोड़कर बरेली की कुछ महिला रंगकर्मियों ने रामलीला में भाग लेना शुरू किया, जिसमें कुछ कलाकार महिलाएं ही है. दशहरा के पहले इन लीला का मंचन होता है. इससे 15 दिन पहले से अभ्यास शुरू हो जाता है.
कहते हैं कला और कलाकारों का कोई रंग कोई धर्म नहीं होता है. वह सभी वर्गों के लिए होती है. ठीक उसी तरह रामलीला में सभी धर्म के कलाकार मंचन करते हैं. बरेली में भी एक ऐसे कलाकार हैं दानिश खान जो राम का किरदार सालों से निभा रहे हैं. उन्होंने अपने कला के माध्यम से धर्म को कभी आड़े आने नहीं दिया.
महिलाओं को अभिनय करने का मिलता है अवसर
भारतीय नाट्यकला का आधार भरत मुनि रचित नाट्य शास्त्र ही रहा है. इसमें नाटक के सभी पात्र पुरुषों के लिए ही निर्दिष्ट थे. लिहाजा लंबे समय तक नाटकों में महिलाओं को मंचन का अवसर नहीं मिला. इधर, पारसी थिएटर ने जब भारतीय सिनेमा की नींव रखना शुरू किया, तब महिलाओं को अभिनय करने का अवसर मिला. इसे धीरे-धीरे समाज में स्वीकार्यता मिलती गई. इसी का असर रामलीलाओं पर भी दिखा. हालांकि रामलीला के मंचन में महिलाओं को एंट्री तब भी नहीं मिली थी.
रंगमंच अभिव्यक्ति का माध्यम है. रामायण हमें आदर्श परिवार, आदर्श पति और पत्नी के आदर्श चरित्र से रू-ब-रू कराती है. एक महिला रोजाना कई किरदार निभाती है. रामलीला में पुरुषों के पात्र भी निभाकर वह एक बड़ा संदेश दे रहीं हैं. असल मायने में उन्हें अभिव्यक्ति की आजादी भी मिल रही है.
मुस्लिम वर्ग भी आते हैं रामलीला देखने
वहीं मुस्लिम वर्ग की भी भागीदारी लगातार रामलीला में देखने को मिलती रहती है. बहुत सारे ऐसे मुस्लिम कलाकार है जो रामलीला में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं. जहां एक ओर अयोध्या में दोनो पक्षों की निगाहें राम मंदिर के फैसले पर टिकी हैं तो वहीं दूसरी और बरेली में मुस्लिम कलाकार राम के रूप को जीवित कर रहे हैं. इन कलाकारों के आगे न तो मस्जिद है न ही मंदिर. इनके आगे केवल अपनी कला है.
मैं 5 साल से सीता का रोल निभा रही हूं. सीता का रोल मुझे नारी शक्ति के लिए प्रेरित करता है क्योंकि मां सीता ने अपने स्वाभिमान को कभी झुकने नहीं दिया. ठीक उसी तरह हम भी नारी शक्ति की एक नई गाथा लिखने के लिए रामलीला का मंचन करते हैं.
-स्मिता श्री, कलाकार
रामलीला सभी वर्ग की है. यह हमारी तहजीब भी है. हमारे शहर को गंगा-जमुना तहजीब के नाम से भी जाना जाता है और मैं इसी परंपरा को आगे बढ़ा रहा हूं. मैं कोशिश करता हूं कि राम के विचार अपने अंदर डाल सकूं क्योंकि राम का किरदार मुझे शक्ति देता है.
-दानिश खान, कलाकार