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सरकारी योजनाओं ने खूब भरी उड़ान, फिर भी नहीं हुआ गांवों का विकास - बरेली में पंचायत चुनाव

उत्तर प्रदेश में कुछ ही महीने बाद त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव होने जा रहे हैं. गांव की सरकारों ने क्या कुछ किया, इसका मूल्यांकन ग्रामीण इन दिनों कर रहे हैं. गांवों में सरकारी योजनाएं उस तरह से उड़ान नहीं भर पाईं, जिस तरह से सरकार अपने नारे और स्लोगन के माध्यम से उनका प्रचार प्रसार करती है. देखिए इसी पर आधारित बरेली की ये खबर...

villages did not grow as expected in bareilly
बरेली में गांवों का विकास नहीं हुआ है.

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Published : Jan 31, 2021, 7:59 PM IST

बरेली:त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव से पहले प्रदेश भर में इन दिनों चुनाव से संबंधित सभी कार्यों को अंतिम रूप दिया जा रहा है. माना जा रहा है कि मार्च के आखिर तक ग्राम पंचायत के चुनाव और अप्रैल तक जिला पंचायत का चुनाव हो सकता है. गांवों में लोग अब अपने गांव के वर्तमान हालातों पर चर्चा कर रहे हैं. गांवों में कुछ लोग अपने लिए सम्भावनाएं भी तलाश रहे हैं तो वहीं पूर्व में पांच साल तक गांवों के विकास की बात करके ग्राम पंचायत सदस्य, बीडीसी सदस्य, ग्राम प्रधान चुने गए लोगों ने क्या किया, उसका भी मूल्यांकन ग्रामीण कर रहे हैं.

गांवों का अपेक्षानुरूप नहीं हो सका विकास.
अपने-अपने पक्ष में सम्भावित प्रत्याशी बना रहे माहौल
इस वक्त गांवों में पूरी तरह से गहमागहमी का माहौल देखा जा सकता है. राजनीतिक दल भी इन चुनावों में अपने समर्थित प्रत्याशी मैदान में उतारने की तैयारी कर रहे हैं. देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा ने भी इस बार प्रदेश में ग्राम पंचायत चुनाव में भी उम्मीदवारों का समर्थन का एलान पहले ही कर दिया है. वहीं पिछले दिनों बरेली आए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व यूपी सीएम अखिलेश यादव ने भी समय आने पर इस बारे में निर्णय लेने की बात कही है. गांव में सम्भावित प्रत्याशी तो अब ग्रामीणों की टोह ले रहे हैं.
पंचायत चुनाव को लेकर लोग कर रहे चर्चा
गांव के चौक चौराहों से लेकर चौपालों तक पर अब चुनावों को लेकर चर्चाओं का दौर है. लोग गांवों में कितना विकास हुआ, कितना नहीं हुआ, अब इस विषय पर चर्चा कर रहे हैं. कहीं ग्रामीण संतुष्ट हैं तो कहीं सरकारी योजनाओं का लाभ न मिलने से वो नाखुश हैं.
नाली का नहीं हो सका निर्माण.
ईटीवी भारत की टीम पहुंच रही गांव-गांव
ईटीवी भारत की टीम भी लगातार गांव-गांव पहुंच रही है. ग्रामीणों से रूबरू होकर यह जानने की कोशिश की जा रही है कि आखिर पिछले 5 साल में उनके गांव में कितने हालात सुधरे. ये भी समझा जा रहा है कि बुनियादी तौर पर क्या बदलाव आया. नाली, खड़ंजा और गंदगी से गांव को कितनी निजात मिली. सरकार के स्वच्छ भारत मिशन अभियान को लेकर गांव में कितना परिवर्तन आया. यानी गांवों की सूरत कितनी बदली.
गांवों में साफ सफाई की दिख रही कमी
ईटीवी भारत की टीम नेबरेली के कई गांवों का दौरा किया. इस दौरान लोग अपनी समस्याएं गिनाते मिले. वहीं कुछ लोग जरूर यह मानते हैं कि गांव में विकास हुआ है, लेकिन इतना नहीं हुआ जितना कि उन्हें उम्मीद थी. आज भी अधिकतर गांवों में साफ-सफाई पर गांव की सरकार विशेष ध्यान नहीं दे पाई है.
संक्रामक बीमारियों के फैलने का बढ़ा खतरा.

नहीं दी गई विकास को तरजीह
जिले में 1,193 ग्राम पंचायतें हैं. गांव की सरकार चलाने का जिम्मा सम्भालने वालों ने क्या कुछ विकास किया, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि एक तो गांवों में अभी भी सबकुछ ठीक नहीं हो पाया. मतलब ये कि अभी भी गांवों की दिशा और दशा नहीं सुधरी. इसकी पुष्टि खुद जिले के अधिकारी ही करते हैं.

स्वीकृत धनराशि भी नहीं हो सकी खर्च
ईटीवी भारत ने बरेली के जिला पंचायत राज अधिकारी (डीपीआरओ) धर्मेंद्र कुमार से बात की. उनसे ये समझने की कोशिश की कि आखिर जिले के ग्राम प्रधान कितनी निधि का इस्तेमाल कर पाए तो जो जानकारी उन्होंने दी, वह भी कम चोंकाने वाली नहीं है. दरअसल, वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए गांवों के विकास के लिए 103 करोड़ रुपये की धनराशि बरेली को प्राप्त हुई थी, ताकि गांवों की तस्वीर बदली जा सके, लेकिन सिर्फ 45 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाया.

करीब 60 प्रतिशत धन का नहीं हुआ इस्तेमाल
डीपीआरओ धर्मेंद्र कुमार कहते हैं कि शेष धनराशि करीब 63 करोड़ रुपये सभी प्रधानों के खाते सीज होने के बाद सरकारी खाते में अभी सुरक्षित है. उन्होंने बताया कि ऑपरेशन कायाकल्प के तहत गांवों में सरकारी विद्यालयों की दिशा-दशा सुधारने पर पैसा खर्च किया गया. इसके अलावा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भी बनाए गए.

अब एक बार फिर गांवों में चुनाव होना है. ऐसे में जहां अपने प्रधान के कार्यों से कुछ लोग चुप्पी साधे दिखते हैं तो कुछ विकास न कराने के लिए खरी खोटी भी सुना रहे हैं. अगर ये धन गांव के चुने जनप्रतिनिधियों ने गांव के विकास कार्यों पर खर्च किया होता तो न सिर्फ गांवों की तस्वीर बदलती बल्कि ग्रामीण भी खुश नजर आते.

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