बरेली: यूपी में ‘लव जिहाद' कानून बनने के बाद बरेली के देवरनिया पुलिस स्टेशन में इस मामले में पहली एफआईआर दर्ज की गई है. पुलिस ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम की धारा 3/5 के तहत मो. उवैश अहमद पर मुकदमा दर्ज किया है. उवैश अहमद पर एक लड़की पर धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डालने का आरोप है. फिलहाल आरोपी घर से फरार है.
बता दें, जबरन धर्मांतरण को लेकर पुलिस ने पहली एफआईआर दर्ज की है. आरोप है कि एक युवक दूसरे समुदाय की छात्रा को प्रलोभन देकर जबरन धर्म परिवर्तित करने का दवाब बना रहा था. विरोध पर छात्रा के पिता और परिवार को जान से मारने की धमकी देता है. पीड़ित छात्रा के पिता की शिकायत पर पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर आरोपों की जांच शुरू कर दी है.
मामले की जानकारी देते एसपी ग्रामीण संसार सिंह एसपी ग्रामीण संसार सिंह ने बताया कि "छात्रा के पिता की शिकायत पर आरोपी के खिलाफ उत्तर प्रदेश विधि विरुध्द धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम और धारा 504, 506 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया है." जबरन धर्म परिवर्तन मामले में यूपी में यह पहला केस है, जिसमें शिकायत मिलते ही पुलिस ने केस दर्ज कर कार्रवाई शुरू कर दी है.
बता दें, मंगलवार को आयोजित कैबिनेट बैठक में 'उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020' पास होने के बाद अब राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने भी मंजूरी प्रदान कर दी है. विधायी अनुभाग की तरफ से जारी सूचना में बताया गया कि राज्यपाल ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020 (उत्तर प्रदेश अध्यादेश संख्या 21 सन 2020) को मंजूरी प्रदान कर दी है. मंजूरी के साथ ही इसे उत्तर प्रदेश में लागू कर दिया गया है.
ऐसे बना यह कानून
यह अध्यादेश उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020 कहा जाएगा. इसका विस्तार संपूर्ण उत्तर प्रदेश में होगा साथ ही यह तुरंत प्रवृत्त होगा. अध्यादेश में प्रलोभन, प्रपीड़न, धर्म संपरिवर्तन, बल, कपटपूर्ण साधन, सामूहिक धर्म संपरिवर्तन, अवयस्क, धर्म, धर्म संपरिवर्तन, असम्यक असर, विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन की विस्तार से व्याख्या की गई है.
इन मामलों में होगी सजा
योगी सरकार के इस ऐतिहासिक कानून के लागू होने के बाद उत्तर प्रदेश में केवल विवाह के लिए किसी महिला के धर्म से, अन्य धर्म में परिवर्तन होता है तो ऐसी परिस्थिति में विवाह शून्य की श्रेणी में लाया जा सकेगा. दबाव डालकर या झूठ बोलकर अथवा किसी अन्य कपटपूर्ण ढंग से अगर धर्म परिवर्तन कराया गया तो यह एक संज्ञेय अपराध के रूप में माना जाएगा. इस गैर जमानती प्रकृति के अपराध के मामले में प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट के न्यायालय में मुकदमा चलेगा.
नाबालिग और दलित युवती के मामले में 3-10 साल की सजा
उपरोक्त में दोष सिद्ध हुआ तो दोषी को कम से कम एक वर्ष और अधिकतम पांच वर्ष की सजा भुगतनी होगी. साथ ही न्यूनतम 15 हजार रुपये का जुर्माना भी भरना होगा. अगर मामला अवयस्क महिला, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की महिला के संबंध में हुआ तो दोषी को तीन वर्ष से 10 साल तक कारावास की सजा और न्यूनतम 25 हजार रुपये जुर्माना अदा करना पड़ेगा.
सामूहिक धर्म प्रवर्तन में 10 साल की सजा
सामूहिक धर्म परिवर्तन की घटनाओं पर लगाम लगाने के बीच में पुख्ता इंतजाम किए गए हैं. नए कानून के मुताबिक सामूहिक धर्म परिवर्तन के मामले में तीन से 10 साल तक की जेल हो सकती है. कम से कम 50 हजार रुपये का जुर्माना भी भरना होगा. अध्यादेश के प्रावधानों के अनुसार धर्म परिवर्तन का इच्छुक होने पर संबंधित पक्षों को जिला मजिस्ट्रेट को दो माह पहले सूचना देनी होगी. इसका उल्लंघन करने पर छह माह से तीन वर्ष तक की सजा हो सकती है. जबकि इस अपराध में न्यूनतम जुर्माना 10 हजार रुपये तय किया गया है.