बरेली: बरेली की नौ विधानसभाओं में से एक मीरगंज विधानसभा 2008 में अस्तित्व में आई, यहां पहली बार 2012 में सूबे की सोलहवीं विधानसभा के लिए निर्वाचन हुआ था. इससे पहले इस विधानसभा क्षेत्र को कावर विधानसभा के नाम से जाना जाता था. मीरगंज या यूं कहें कि पूर्ववर्ती कावर विधानसभा भी इमरजेंसी से पहले 1974 में बनी थी. फतेहगंज पश्चिमी, शीशगढ़, शेरगढ़, शाही नगर पंचायत और मीरगंज नगरपालिका क्षेत्र से बनी इस विधानसभा क्षेत्र के अन्तर्गत 271 ग्राम पंचायते आती हैं. मूल रूप से आजीविका के लिए यहां के लोग खेती पर निर्भर हैं. यहां गन्ने का उत्पादन अधिक होता है.
समस्याएं और विकास
ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती मीरगंज विधानसभा क्षेत्र में कस्बाई इलाके के विकास तो दिखाई देता है, लेकिन ग्रामीण अंचल के क्षेत्रों में विकास अभी भी कोसों दूर है. कई गांवों के लिए सम्पर्क मार्ग खस्ताहाल हैं, जिससे किसानों को अपने उत्पाद को मंडी तक लाना मुश्किल होता है. बिजली की आपूर्ति नगरीय क्षेत्र में 23 घंटे और गांवों में 12 से 16 घंटे आपूर्ति रहती है. शैक्षणिक संस्थानों के अभाव के कारण स्कूल और कालेज के लिए बच्चे जिला मुख्यालय के लिए रूख करते हैं. राष्ट्रीय राजमार्ग चौबीस से जुड़े होने के कारण हाल ही में कई प्राइवेट इन्जीनियरिंग और मैनेजमेंट कालेज बने हैं, लेकिन मंहगी शिक्षा होने के कारण आम लोगों की पहुंच से दूर हैं.
क्षेत्र में अनाज और गन्ने के भारी उत्पादन के बावजूद यहां कोई बड़ी मंडी विकसित नहीं हो सकी, डॉ. डी.सी. वर्मा ने लंबे समय से खाली पड़ी रबर फैक्ट्री की जमीन पर सिडकुल और टेक्सटाइल पार्क बनाने के लिये मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से पैरवी की थी, जिससे यहां के युवाओं को रोजगार मिल सके. मीरगंज के गोरा घाट के पुल के लिये वित्त विभाग से 41 करोड़ रुपए रिलीज कराये थे. यही मुद्दे आगामी विधानसभा चुनाव में असर डालेंगें.
राजीतिक परिचय
2008 से अस्तित्व में आयी मीरगंज विधानसभा क्षेत्र को पहले कावर विधानसभा के नाम से जाना जाता था. 1974 से अस्तित्व में आयी कॉवर विधानसभा पर कभी भी एक पार्टी का वर्चस्व नहीं रहा. 1974 के पहले आम चुनाव से कावर विधानसभा लगातार तीन बार कॉग्रेस की झोली में रही. 1974 से 1991 तक यहां इण्डियन नेशनल कॉग्रेस का प्रतिनिधित्व रहा.