बरेली: एसआरएमएस रिद्धिमा में थिएटर फेस्ट 'इंद्रधनुष' के तीसरे दिन साईं की शिक्षाओं पर आधारित नाटक साईं सच्चरित्र का मंचन किया गया. एसआरएमएस ट्रस्ट चेयरमैन देव मूर्ति ने साईं का किरदार निभाने वाले मुकुल नाग और नीता कुदेशिया को स्मृति चिन्ह भेंट कर उनका स्वागत किया.
नाटक की शुरुआत साईं बाबा द्वारा दी गई शिक्षा सबका मालिक एक है सेह हुई. नाटक में दिखाया गया कि हेमाडपंत बाबा का भक्त उनके पास आता है और कहता है कि बाबा में अपना जीवन परिचय लिखना चाहता हूं. इस पर साईं बड़ी सरलता से कहते हैं कि मेरी जीवनी लिखने से पहले तुझे अपने अंदर के अहंकार को खत्म करना होगा.
इस प्रकार शुरू होती है साई बाबा की कहानी. हेमाडपंत बाबा से पूछता है कि आप शिरडी कैसे पहुंचे बाबा बताते हैं कि वह 16 बरस में शिरडी आये थे और वहीं उन्हें अपने गुरु की प्राप्ति हुई. गुरु के समाधि लेने के बाद शिरडी से जाने का मन किया तो बाईजा मां ने जाने से रोकना चाहा. बाईजा मां रोकती रही, लेकिन मैंने शिरडी को छोड़ दिया और चल पड़े अपनी लीलाओं से लोगों का भला करने के लिए.
साईं बताते हैं कि गुरु ने उन्हें दो सिक्के श्रद्धा और सबुरी दिए थे. जिन्हें बाईजा मां को दे आया था, एक बार पाटिल ने मुझसे कहा साईं बाबा शिरडी चलो मेरे भतीजे की शादी में और मैं फौरन वापस शिरडी लौट आया. वहीं से मेरा नाम साईं बाबा रख दिया गया. बाईजा मां से मिलते ही उन्होंने पूछ तो मैंने कह दिया गुरु की आज्ञा से तपस्या करने गया था. लेकिन ये वो शिरडी नहीं थी जिसे मैं छोड़कर गया था लूटमार, चोरी, मारकाट लोगों के मन मे अपना घर बना चुकी थी, तब ईश्वर ने मुझे आज्ञा दी चमत्कार करने की क्योंकि चमत्कार को ही नमस्कार होता है.
एक बार एक छोटी सी बच्ची एक सेठ से पैसे मांगने के लिए गई लेकिन सेठ ने उस छोटी बच्ची को धक्के मारकर निकाल दिया. साई बाबा ने उस बच्ची से पूछा कि तुम्हे चोट कैसे लगी तो उसने बताया कि उसके पिता बीमार हैं. वह दवा के लिए पैसे मांगने आई थी, लेकिन वह नीची जाति की थी, इसलिए उसे धक्के मारकर निकाल दिया गया. मैने बच्ची से कहा मैं चलता हूं तुम्हारे घर बच्ची के पिता अपने पिछले जन्म के कर्मों को भोग रहा था और बाबा ने उसके दुख अपने ऊपर ले लिए.