बरेली : शहर मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर गजनेरा गांव एक विशालकाय टीले पर बसा है. इस गांव में तीन हजार वर्ष पुरानी पेटेंट ग्रेवल कल्चर यानी चित्र धूसर मृदभांड संस्कृति की तलाश में खुदाई की शुरुआत की गई है.
बरेली: तीन हजार साल पुरानी सभ्यता की तलाश में शुरु हुआ खनन - बरेली में शुरू हुई खुदाई
सदियों पुरानी सभ्यताओं के राज खोलने और कुछ नया जानने के लिए पुरातत्व विभाग ने खुदाई का सहारा लिया. ऐसी ही तलाश में रोहिलखंड यूनिवर्सिटी की टीम ने कैलाश नदी के किनारे बसे गजनेरा में डेरा जमा लिया है.
खनन में सदियों पुरानी सभ्यताओं के राज खुलेंगे.
क्या है खनन का उद्देश्य?
- सालों से बदलते भूगोल से अब कहीं टीला बचा है तो कहीं खत्म हो गया है.
- काफी प्रयास के बाद अब इस गांव में उत्खनन का काम शुरू हो पाया है.
- रोहिलखंड यूनिवर्सिटी की टीम इस गांव में खुदाई करने जा रही है.
- यूनिवर्सिटी के वीसी प्रो. अनिल शुक्ला ने इसका शुभारंभ किया.
- प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति विभाग के प्रोफेसर श्याम बिहारी लाल पूरे अभियान की अगुवाई कर रहे हैं.
- यहां तीन हजार साल पुराने अवशेषों के मिलने की उम्मीद है.
- अवशेषों पर शोध करके उस वक्त के पहनावे, खान-पान और दिनचर्या की जानकारी मिल सकती है.
पुरातत्व विभाग की टीम आई हुई है. यहां खुदाई से हमलोग पता करने की कोशिश करेंगे कि उस समय लोग क्या पहनते थे, कैसे रहते थे. साथ ही धूसर मृदभांड संस्कृति के बारे में और जानकारी मिलेगी.
- प्रोफेसर श्याम बिहारी लाल, प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति विभाग