बरेली:प्रेसबायोपिया (Presbyopia) यानी नजदीक की नजर कमजोर होना ये आम तौर पर 40 साल से अधिक उम्र के लोगों की आंखों में होने वाली बीमारी है. लेकिन, आज-कल के दौर में ऑनलाइन पढ़ाई के साथ-साथ मोबाइल फोन और लैपटॉप जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से अत्यधिक चिपके रहने के कारण ये बीमारी अब बच्चों और युवाओं में भी बढ़ने लगी है. नेत्र रोग विशेषज्ञों के मुताबिक ऐसे अब तेजी से बढ़ोतरी हो रही है.
देखें ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट. कोरोना काल में स्कूल बंद हैं, ऐसे बच्चों की बढ़ाई सुचारू रूप से जारी रहे इसके लिए ऑनलाइन क्लासेज चलाई जा रही हैं. जिसमें बच्चे घटों मोबाइल और लैपटॉप के आगे बैठकर पढ़ाई करनी पड़ रही. इसके साथ ही आज के दौर में बच्चों में मोबाइल, टैब और लैपटॉप जैसे मोबइल गैजेट्स पर वीडियो गेम खेलने और कार्टून देखने का भी चलन बढ़ा है. जिसका दुष्प्रभाव प्रभाव भी उनकी आंखों पर पड़ रहा है.
इस बारे में हमने कई छात्र-छात्राओं से बात की, वो कहते हैं कि लगातार ऑनलाइन पढ़ाई के चलते न चाहते हुए भी मोबाइल फोन का अत्यधिक प्रयोग करने से उनकी आंखों में परेशानियां हो रही हैं. वहीं बच्चों के परिजनों का भी मानना है कि एक तो अधिक मोबाइल के प्रयोग से बच्चों में अवसाद उत्पन्न हो रहा है. नेत्र विकार बढ़ रहे हैं, बच्चे आंखों में तकलीफ होने की शिकायत करते हैं.
ईटीवी भारत ने इस बारे में जिले के मशहूर नेत्र चिकित्सक डॉ. वीवी सिद्धू से बात की, उनका कहा है कि ये समस्या काफी बड़ी है, वो बताते हैं मोबाइल और अन्य इलेक्ट्रॉनिक गैजेस्ट के अत्यधिक प्रयोग से बच्चों की आंखों पर काफी दुष्प्रभाव पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि, इलेक्ट्रॉनिक गैजेस्ट से ज्यादा इस्तेमाल से लोगों की आंखों की रोशनी कम होती जा रही है. उनके पास आने वाले मरीजों में 15 से 20 प्रतिशत छोटे बच्चे होते हैं, जिनकी देखने की क्षमता पर असर पड़ा है.
जानिए, क्या होता है प्रेसबायोपिया...
प्रेसबायोपिया समान्य तौर पर बढ़ती उम्र के साथ होने वाली बीमारी है. ज्यादातर ये 40 साल से अधिक उम्र के लोगों में होती है. इसमें लोगों की आंखों को निकट में फोकसिंग करने की क्षमता का सामान्य नुकसान है. ऐसे में छोटे प्रिंट या बारीक वस्तुओं को स्पष्ट रूप से देखने में परेशानी होने लगती है. इस बीमारी में लोगों की बढ़ती उम्र के साथ उनकी आंखों के लेंस कठोर हो जाते हैं. ऐसे में जब आप किसी चीज को करीब से देखते हैं तो फिकसिंग करने में दिक्कत होती है. एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2011 में दुनिया भर में अनुमानित 1.3 बिलियन लोगों प्रेसबायोपिया से पीड़ित थे, लेकिन 2020 तक ये आंकड़ा बढ़कर 2 बिलियन के पार पहुंच गया. हालांकि, ये बढ़ती उम्र के साथ होने वाली एक समान्य प्रक्रिया है, लेकिन अब इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के ज्यादा इस्तेमाल से बच्चों और युवाओं में प्रेसबायोपिया की शिकायत बढ़ने लगी है.
उपचार और बचाव
नेत्र चिकित्सक वीवी सिद्धू के मुताबिक हरी साग-सब्जियां और प्रोटीन युक्त पौष्टिक भोजन के साथ दूध और बादाम को डाइट में शामिल करके आंखों को स्वास्थ रखा जा सकता है. इसके साथ ही उन्होंने लोगों को मोबाइल फोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के फालतू इस्तेमाल से बचने की सलाह दी. साथ ही उन्होंने कहा कि, ऑनलाइन क्लास के दौरान भी बच्चे लगातार मोबाइल फोन, लैपटॉप और टैब की स्क्रीन की तरफ लगातर नहीं देखें.
नेत्र चिकित्सकों का मानना है कि क्योंकि आज की पीढ़ी ने दूर का देखना छोड़ दिया है. आउटडोर गेम्स से लोगों का मोहभंग हुआ है, ज्यादातर लोग अपने घरों में ही रह रहे हैं. जिसकी वजह से लोगों में आंखों में ऐसी परेशानियां बढ़ रही हैं.
आंखों को स्वस्थ रखने में योग भी लाभकारी
मशहूर योगा ट्रेनर अंशू त्रिपाठी ने बताया कि कई तरह के योग आसन हैं, जिन्हें करने से आंखों को फायदा होता है. इसके लिए बहुत से लोग उनसे संपर्क करके सुझाव लेते हैं कि कैसे आंखों को सुरक्षित रखा जाए.
इसके अलावा लेंस वाले चश्मे प्रेसबायोपिया का सबसे लोकप्रिय समाधान हैं. ये लाइन-फ्री मल्टीफोकल लेंस निकट दृष्टि को स्पष्ट कर और सभी दूरी पर उत्कृष्ट दृष्टि प्रदान करते हैं. इसके साथ ही कॉन्टैक्ट लेंस और मामलों में सर्जरी के जरिए भी प्रेसबायोपिया का उपचार संभव है.