बरेली:पूरे देश में कारगिल विजय दिवस मनाया जा रहा है. 1999 में हुए कारगिल युद्ध में देश की खातिर सैकड़ों जवानों ने अपने प्राण न्योछावर करते हुए अपनी जान दे दी थी. कारगिल में शहीद हुए जवानों में से एक शहीद हरिओम सिंह का परिवार बरेली में रहता है. जो 22वीं कारगिल विजय दिवस पर उनकी शहादत को याद कर गर्व महसूस करता हैं. जानते है शहीद हरिओम सिंह के परिवार से शहादत की कहानी.
1999 में तीन महीनों तक कारगिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तान के खिलाफ चले ऑपरेशन विजय में सैकड़ों सेना के जवान शहीद हुए थे. देश की खातिर दुश्मनों से मुकाबला करते हुए ये वीर अपनी जान देकर शहीद हो गए थे. इन शहीद जवानों में एक जवान हरिओम सिंह भी थे. जिन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों को धूल चटा दी थी. कारगिल की लड़ाई में बरेली के हरिओम सिंह की शहादत के बाद उन्हें स्पेशल सर्विस मेडल दिया गया था. शहीद हरिओम सिंह को शहादत को देश नमन करता है.
उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले की बिसौली तहसील के रहने वाले हरिओम सिंह की पत्नी गुड्डो देवी बताती हैं कि शहीद हरिओम ने 1986 में हवलदार के पद पर आर्मी में भर्ती हुए थे, जिसके बाद देश की सेवा का जज्बे को लिए हर वक्त तैयार रहते थे. शहीद हरिओम सिंह की पत्नी गुड्डो देवी ने बताया कि शहीद हरिओम को मैदानी इलाके अच्छे नहीं लगते थे. उन्होंने कहा कि वह एक शानदार फौजी थे, और उन्होंने अपनी अधिकतर ड्यूटी पहाड़ी और सियाचिन जैसे जबरदस्त बर्फीले इलाकों में सरहद की हिफाजत करते हुए पूरी की थी. उन्होंने बताया कि शहीद हरिओम सिंह ने तीन युद्ध लड़े जिनमें ऑपरेशन रक्षक, ऑपरेशन पवन और अंतिम ऑपरेशन विजय था. कारगिल में हुए ऑपरेशन विजय के दौरान एक जुलाई 1999 में हवलदार हरिओम सिंह शहीद हो गए थे, और 4 जुलाई 1999 को उनके शहीद होने की खबर आई.
शहादत से पहले छुट्टी आए थे घर
कारगिल विजय दिवस के मौके पर ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए शहीद हरिओम सिंह की पत्नी ने गुड्डो देवी ने बताया कि ऑपरेशन विजय से पहले वह छुट्टी पर गांव लौटे थे और अपने परिवार के साथ छुट्टियां बिता रहे थे, पर युद्ध के चलते छुट्टी रद्द होने के बाद उनको ड्यूटी पर लौटना पड़ा. जहां वह कारगिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तान के छक्के छुड़ाते विजय गाथा लिखते हुए वहीं जंग में शहीद हो गए.