बरेलीःदेश की सबसे प्रसिद्ध दरगाह आला हजरत की तरफ से 10 जुलाई को मनाए जाने वाले ईद-उल-अजहा (बकरीद) पर दी जाने वाली कुर्बानी को लेकर विशेष अपील की है. दरगाह आला हजरत के सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन मियां ने कहा कि अच्छा मुसलमान व अच्छा शहरी होने की ज़िम्मेदारी निभाते हुए कुर्बानी देते वक्त दूसरे मजहब की भावनाओं का खास ख्याल रखते हुए कुर्बानी खुले में न करें. किसी बंद जगह में कुर्बानी कर उसके अवशेष किसी गड्ढे में दफन कर दे. साथ ही कुर्बानी के खून को नालियों में न बहने दे. कुर्बानी के फोटो या वीडियो सोशाल मीडिया पर वायरल न करें.
दरगाह आला हजरत के मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर किया है. जिसमें कहा गया है कि 'दरगाह आला हजरत के सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन रजा कादरी (अहसन मियां) ने दीनी मसाइल पर चर्चा करते हुए कहा कि ईद-उल-अजहा का त्यौहार हजरत इब्राहीम अलहेअस्सलाम की याद में मनाया जाता है. कुर्बानी उन्हीं की सुन्नत है. देश भर के मुसलमान इस सुन्नत को खुशदिली के साथ अदा करें. ईद-उल-अजहा मजहबी त्योहार के साथ ही इंसानियत का भी त्यौहार है. यह उन एहसासों का त्यौहार है जो इंसानियत के लिए बेहद ज़रूरी है. हम मुसलमानों की जब दोनों ईद आती है तो उस दिन का आगाज दो रकात नमाज वाजिब से होता है.'
रजा कादरी ने आगे कहा कि 'मुसलमान ईद उल अज़हा को यह नमाज अदा कर कुर्बानी देकर अपने रब को राजी करता है. अल्लाह क़ुरआन में इरशाद फरमाता है कि ऐ महबूब अपने रब के लिए नमाज पढ़ो और कुर्बानी करो. हलाल तरीके से कमाए हुए पैसों से कुर्बानी जायज मानी जाती है, हराम की कमाई से नहीं. उन्होंने आगे कहा कि 'ऐसे जानवरों की ही कुर्बानी करें जिसकी हमे भारतीय कानून से इजाजत है. ऐसे जानवरों की कुर्बानी बिल्कुल न करे जिन पर हुकूमत-ए-हिन्द द्वारा प्रतिबंध है. कुर्बानी के दिनों में साफ-सफाई का खास ख्याल रखें. दीन-ए-इस्लाम मे साफ-सफाई को आधा ईमान करार दिया गया है. अमन-ओ-सुकून के साथ ईद-उल-अज़हा का त्यौहार मनाए.'