बरेली: बेटियों को पढ़ाने और आगे बढ़ाने का संकल्प तो हर कोई लेता है पर उस पर अमल कहीं कहीं होता है, पर बरेली का इस्लामिया बालिका इंटर कॉलेज की प्रधानाचार्य चमन जहाँ जरूरतमंदों का मिनी बैंक बना कर गरीब बेटियों की पढ़ाई में आर्थिक मदद कर अहम रोल निभा रही हैं. जिन छात्राओं की आर्थिक तंगी के चलते कॉलेज की फीस जमा नहीं हो पाती है या वह अपनी ड्रेस के कपड़े नहीं खरीद पाते हैं तो उनको इस माध्यम से मदद की जा रही है. जरूरतमंदों की मिनी बैंक से पैसे निकाल कर आर्थिक तंगी से जूझ रही छात्राओं की फीस के साथ साथ उनकी जरूरतों के लिए भी पैसा देकर उनको पढ़ाई में मदद की जा रही है.
अधिकतर आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की बालिकाएं पढ़ाई करने के लिए आती हैं. जिनमें से कुछ के मां-बाप के पास कभी-कभी कॉलेज की फीस जमा करने और उनकी स्कूल ड्रेस खरीदने को पैसे नहीं होते, जिसके चलते छात्राएं बीच में पढ़ाई छोड़ कर घर में बैठने को मजबूर हो जाती हैं. ऐसी छात्राओं की परेशानी को समझते हुए इस्लामिया बालिका इंटर कॉलेज की प्रधानाचार्य चमन जहां ने बैतूलमाल यानी कि जरूरतमंदों का मिनी बैंक बना डाला. इस मिनी बैंक की शुरुआत लगभग 11 साल पहले हुई, जब चमन जहां ने इस्लामिया बालिका इंटर कॉलेज में प्रधानाचार्य के पद पर तैनाती हुई तो उन्होंने महसूस किया कि कुछ पढ़ने लिखने वाली छात्राएं बीच में पढ़ाई छोड़ कर घर बैठ जा रही है.
जिसके बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ने का कारण छात्राओं से जाना तो उन्हें पता चला कि परिवार की आर्थिक तंगी के चलते उनके मां-बाप उनकी स्कूल फीस जमा नहीं हो पा रही हैं, और कभी कभी स्कूल ड्रेस खरीदने के लिए भी उनके पास पैसा नहीं है. इस्लामिया बालिका इंटर कॉलेज की प्रधानाचार्य चमन जहां जब छात्रों की समस्या को बारीकी से जाना तो उन्होंने बैतूलमाल यानी कि जरूरतमंदों का मिनी बैंक बनाने की ठान ली. जिसके बाद इस्लामिया बालिका इंटर कॉलेज की प्रधानाचार्य चमन जहां एक बैतूलमाल यानी कि जरूरतमंदों का मिनी बैंक बनाया जिसमें जकात के पैसों को डालना शुरू किया.
2010 में शुरू हुआ बैतुलमाल
इस्लामिया बालिका इंटर कॉलेज की प्रधानाचार्य चमन जहां ने बताया कि जब 2010 में उन्होंने कॉलेज में प्रधानाचार्य के पद पर तैनाती हुई तो उनको महसूस हुआ कि आर्थिक तंगी के चलते कुछ छात्राएं पढ़ाई बीच में छोड़ रही हैं, उनकी मदद के लिए कुछ किया जाए जिसके बाद अपनी आमदनी में से ढाई परसेंट जकात के पैसे को छात्राओं के फीस और उनकी जरूरी सामान के लिए खर्च कर उनकी मदद करने की सोची. उसके बाद चमन जहां ने 2010 में बैतूलमाल यानी कि जरूरतमंदों का मिनी बैंक बनाया. शुरुआत में चमन जहां ने अपने जकात के पैसों को बैतूलमाल में डालती थीं पर धीरे-धीरे उनके साथ उनके सगे संबंधी रिश्तेदार और स्कूल का अन्य स्टाफ भी जकात के पैसों को बैतूलमाल जमा करने लगे, इससे जरूरतमंदों के मिनी बैंक में जमा होने वाले पैसे से कॉलेज में पढ़ने वाली छात्राओं की फीस जमा की जाती है.