बरेली: जिले का घंटाघर चुनिंदा ऐतिहासिक इमारतों में से एक है, जो बरेली की पहचान को दर्शाता है, लेकिन अब समय के साथ-साथ लोगों की यादों से दूर होता जा रहा है. नई पीढ़ी को तो शहर के इस घंटाघर के इतिहास के बारे में कुछ भी पता नहीं है कि किस तरह इस घंटाघर का निर्माण हुआ. बदहाली का आलम इस तरह है कि सात साल से बंद पड़े इस घंटाघर में लगी घड़ी की सुइयां तक हिली नहीं हैं. नगर निगम प्रशासन न तो इस ओर ध्यान दे रहा है और न ही इस पर कोई काम कर रहा है, जिससे इस घंटाघर को नई पहचान मिल सके.
आजादी से पहले इस जगह पर कुतुबखाना लाइब्रेरी हुआ करती थी, लेकिन वक्त के साथ-साथ लाइब्रेरी की इमारत खंडहर में बदल गई और इस जगह पर घंटाघर का निर्माण हो गया. धीरे-धीरे यह घंटाघर शहर की पहचान बन गया.
शहर के अधिकतर लोग अपने घड़ी का समय इसी घंटाघर को देखकर मिलाते थे. तब से इस जगह का नाम कुतुबखाना घंटाघर पड़ गया, लेकिन समय के साथ-साथ इस इमारत की देख-रेख नहीं होने के कारण इसकी सुइयों ने चलना बंद कर दिया. वहीं प्रशासन की अनदेखी के कारण लोग अब इस घंटाघर की तरफ देखते भी नहीं है, जहां पहले लोग घंटाघर को देख कर टाइम बताते थे, वहीं अब लोग इस घंटाघर को भूल गए हैं.