बरेली :हिंदू धर्म में मृत्यु के तीसरे दिन दिवंगत आत्मा की शांति के लिए अस्थियों को विसर्जित करने की मान्यता है. इस मान्यता पर कोरोना महामारी की विपदा भारी पड़ रही है. यूपी के बरेली जिले में कोरोना महामारी का प्रकोप कम होने का नाम नहीं ले रहा. इससे अस्थियां श्मशान घाट पर ही विसर्जन की राह ताक रही हैं. बरेली में भी अस्थियां अपने अजीजों का इंतजार कर रही हैं, वो भी श्मशान घाटों पर. दरअसल, नगर के सिटी श्मशान भूमि में इन दिनों काफी संख्या में अस्थियां एकत्र हो गई हैं. इन्हें लेने कोई नहीं पहुंच रहा है, क्योंकि इसके पीछे कोरोना महामारी का खौफ है.
कम पड़ रहे थे चिता-चबूतरे बरेली के श्मशान घाट पर यूं तो करीब 35 चिता-चबूतरे थे. उसके बावजूद वहां डेड बॉडी लेकर पहुंचने वाले परिजनों को अंतिम संस्कार के लिए इंतजार करना पड़ रहा था. ईटीवी भारत ने इस संबंध में पिछले दिनों एक खबर चलाई थी. इसके बाद जिला प्रशासन ने हालात को देखते हुए श्मशान घाट पर अलग से चबूतरे बनवाए.
कोरोना के खौफ से विसर्जन का इंतजार कर रहीं अस्थियां. जिले में लगातार बढ़ रहा मौत का आंकड़ा
जनपद बरेली में पिछले माह अप्रैल की शुरूआत से देखने में आया है कि शहर में श्मशान हो या कब्रिस्तान, हर दिन अब वहां लोगों की भीड़ देखी जा रही है. बरेली के सिटी भूमि श्मशान घाट पर ईटीवी भारत की टीम ने जाकर इसी बारे में पड़ताल की तो जो तथ्य निकल कर सामने आए वो काफी परेशान करने वाले थे. दरअसल, श्मशान भूमि में इन दिनों काफी संख्या में शव लेकर लोग पहुंच रहे हैं. श्मशान घाट के केयरटेकर ने बताया कि पहले जहां अंतिम संस्कार के लिए आने वालों की संख्या काफी कम होती थी, वहीं अब ये कई गुना बढ़ गई है. केयरटेकर के मुताबिक, पिछले अप्रैल माह में ही करीब 600 अंतिम संस्कार किए गए हैं, जबकि सामान्य तौर पर एक माह में 200-250 के बीच अंतिम संस्कार हुआ करता था.
श्मशान घाट पर अपनों के इंतजार में विसर्जन के लिए पड़ी अस्थियां. अस्थियां लेने नहीं पहुंच रहे लोग इन दिनों श्मशान घाटों पर काफी संख्या में अस्थियां इकट्ठी हो गई हैं. कोरोना महामारी के खौफ से अस्थियां लेने के लिए कोई नहीं आ रहा है. श्मशान घाट की व्यवस्था में लगे पंडित ने बताया कि करीब 60 स्वर्गवासियों की अस्थियां इन दिनों श्मशान घाट में जमा होगी. इन अस्थियों को वह हर दिन बकायदा नाम और पता लिखकर मटके में रखकर कपड़े में बांध देते हैं, ताकि अगर किसी के परिजन देर-सवेर आ भी जाएं तो उन्हें तकलीफ न हो. पंडित ने बताया कि अगर कोई पूरे वर्ष तक नहीं आता है तो वह खुद ही अस्थि कलशों को लेकर स्वयं एक संस्था के माध्यम से गंगा में प्रवाहित करवा देते हैं.