बाराबंकी: गोष्ठियों और सेमिनारों में महिला हितों की बड़ी-बड़ी बातें भले ही की जाती हों, लेकिन हमारा समाज आज भी पुरुष मानसिकता से ऊपर नहीं उठ पाया है. राजनीति हो या दूसरे क्षेत्र ज्यादातर मामलों में देखने में आया है कि पुरुष महिलाओं को पीछे करके खुद आगे आ जाते हैं, लेकिन जब बात नसबंदी (sterilization) जैसे राष्ट्रीय कार्यक्रम (National Programme) की आती है तो पुरुष खुद पीछे होकर महिलाओं को आगे कर देते हैं. कम से कम बाराबंकी में तो ऐसा ही दिखाई दे रहा है, जहां पिछले एक दशक से पुरुषों की नसबंदी (Vasectomy) न के बराबर है, जबकि महिलाएं बढ़-चढ़कर अपना योगदान दे रही हैं.
आंकड़े तो यही बताते हैं -
वर्ष | महिला नसबंदी | पुरुष नसबंदी |
2010-11 | 4094 | 13 |
2011-12 | 3463 | 05 |
2012-13 | 3179 | 03 |
2013-14 | 4973 | 24 |
2014-15 | 6618 | 22 |
2015-16 | 4513 | 30 |
2016-17 | 5145 | 63 |
2017-18 | 4554 | 48 |
2018-19 | 4757 | 24 |
2019-20 | 1165 | 07 |
2020-21 | 4134 | 20 |
जनसंख्या नियंत्रण की बनी थी योजना
तेजी से बढ़ रही जनसंख्या को काबू में करने के लिए भारत में वर्ष 1952 में परिवार कल्याण कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी, जिसका मकसद था कि देश की अर्थव्यवस्था की आवश्यकता के अनुरूप जनसंख्या नियंत्रित करने के लिए जन्म दर में कमी लाई जाए. इसके लिए नसबंदी जैसे तमाम कार्यक्रम चलाए गए, लेकिन हैरानी की बात यह है कि पुरुषों की इसमें जरा भी दिलचस्पी नहीं है. जबकि महिलाओं का योगदान बहुत है. तमाम महिलाओं को इस भेद को लेकर खासी पीड़ा भी है. उनका कहना है कि परिवार नियोजन अकेले उनकी जिम्मेदारी नहीं है, इसमें पुरुषों को भी आगे आना होगा.