बाराबंकी: त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर एक बार फिर सभी राजनीतिक दलों ने सक्रियता बढ़ा दी है. हर पांच वर्ष बाद होने वाले इन पंचायत चुनावों को विधानसभा चुनावों का सेमीफाइनल माना जा रहा है. जिला पंचायत सदस्य, ग्राम प्रधान और क्षेत्र पंचायत सदस्यों के लिए होने वाले इस चुनाव को लेकर खासी गहमागहमी रहती है. चुने गए सदस्यों का काम होता है कि वे अपने क्षेत्र का विकास करें. इसके लिए इनको समय-समय पर सरकारी फंड दिया जाता है. पिछले पांच वर्षों में क्या काम हुए इसकी ईटीवी भारत की टीम ने पड़ताल की.
पंचायत चुनाव को लेकर बढ़ी गहमा गहमी
5 साल बाद एक बार फिर त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर गहमागहमी तेज हो गई है. प्रत्याशियों ने गांव-गांव जाना शुरु कर दिया है. प्रत्याशी अपने क्षेत्र में जा जाकर गांव और क्षेत्र में विकास की गंगा बहाने की बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं, लेकिन सच्चाई ये है कि चुनाव बीत जाने के बाद कोई भी जनप्रतिनिधि इन गांव वालों की सुधि नहीं लेता है.
तमाम गांव विकास से कोसों दूर
सच्चाई तो ये है कि अधिकांश गांव आज भी विकास की बाट जोह रहे हैं. पिछले 2015 में हुए पंचायत चुनाव के बाद ग्रामीणों को उम्मीदें थीं कि उनके क्षेत्र का विकास होगा, लेकिन ग्रामीणों की उम्मीद पूरी नहीं हुई.
रियलिटी चेक में सामने आई सच्चाई
ऐसे ही एक गांव पाटमऊ के धरती पुरवा और रतनपुर का जब ईटीवी भारत ने रियलिटी चेक किया, तो जमीनी हकीकत सामने आ गई. हालांकि गांव में शौचालय बने हैं, लेकिन नाली, खडंजा और पेयजल की समस्या है. बरसात में गांव की गलियों में पानी भरने की समस्या से अवगत कराने के बाद भी जनप्रतिनिधियों ने कोई ध्यान नही दिया. गांव की सबसे बड़ी समस्या है गांव में बारात घर न होना. जिसके चलते गांव में किसी लड़की की शादी होने पर भारी समस्या होती है.