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जल संरक्षण के लिए इस ग्राम प्रधान ने शुरू की अनोखी मुहिम, अब सुखे कुएं फिर से बनेंगे इस्तेमाल योग्य

पानी की किल्लत (water shortage) का एहसास अब गांव वालों को भी हो चला है. इन्हें लगने लगा है कि वक्त रहते अगर पानी को नहीं बचाया गया तो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा. हर वर्ष अप्रैल, मई और जून में वाटर लेवल तेजी से गिर जाता है.

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Published : Apr 13, 2022, 5:08 PM IST

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जल संरक्षण के लिए इस ग्राम प्रधान ने शुरू की अनोखी मुहिम

बाराबंकी: जल अमूल्य है. इसके बिना जीवन की कल्पना बेमानी है. इसीलिए कहा जाता है कि जल ही जीवन है. दिनों दिन हो रहे जल के अंधाधुंध दोहन से जल का बड़ा संकट खड़ा हो गया है. लिहाजा जल संरक्षण बहुत जरूरी है. यूं तो सरकारें और तमाम गैर सरकारी संगठन जल संरक्षण के लिए अभियान चला रहे हैं लेकिन बाराबंकी के एक ग्राम प्रधान ने जल संरक्षण के लिए अनोखी मुहिम शुरू की है.

जल संरक्षण के लिए इस ग्राम प्रधान ने शुरू की अनोखी मुहिम

पानी की किल्लत का एहसास अब गांव वालों को भी हो चला है. इन्हें लगने लगा है कि वक्त रहते अगर पानी को नहीं बचाया गया तो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा. तभी तो यहां की ग्राम प्रधान कांति देवी और उनके पति विनोद कुमार ने मुहिम छेड़ दी है. ये हैं मसौली विकासखंड के मुबारकपुर गांव की ग्राम प्रधान कांति देवी और उनके पति विनोद कुमार. दिनों दिन जल संकट को देख इन्होंने पानी बचाने की मुहिम छेड़ी है. गांव के किनारे स्थित तालाब पर पूजा अर्चना कर इन्होंने संकल्प लिया है कि वे न केवल खुद के गांव में अभियान चलाएंगी बल्कि आसपास के गांव वालों को भी पानी की उपयोगिता बताते हुए उसके संरक्षण के लिए जागरूक करेंगी.

गांव में तकरीबन 40 कुएं थे लेकिन आज कुछ गिने चुने कुएं हैं जो इस्तेमाल में हैं. अब इन कुओं की साफ-सफाई कराकर उन्हें इस्तेमाल योग्य बनाया जाएगा. इस पहल को लेकर गांव वालों में खासा उत्साह है. ग्रामीणों को एहसास है कि पानी तेजी से घट रहा है. हर वर्ष अप्रैल, मई और जून में वाटर लेवल तेजी से गिर जाता है.

घट रहा है पानी :आजादी के समय देश में प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 5000 क्यूबिक मीटर थी जबकि उस समय देश की आजादी 40 करोड़ थी. आबादी बढ़ने से पानी की उपलब्धता कम होती गई. माना जा रहा है कि वर्ष 2025 तक ये घटकर 1500 क्यूबिक मीटर रह जाएगी.

पानी का हो रहा दोहन :योजना आयोग के मुताबिक भूजल का 80 फीसदी से अधिक भाग कृषि क्षेत्र में उपयोग किया जाता है. देश का 29 फीसदी हिस्सा पानी की भीषण समस्या (severe water problem) से जूझ रहा है. इसके लिए कृषि के साथ -साथ औद्योगिक इकाइयां भी जिम्मेदार हैं. हमारे देश में नदियों और नहरों का जाल (network of rivers and canals) बिछा होने के बावजूद वर्षा से मिलने वाले पानी का तकरीबन 47 फीसदी हिस्सा नदियों के जरिये समुद्र के खारे पानी (sea ​​salt water) में चला जाता है. इस पानी को संरक्षित किया जा सकता है.

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आंकड़े बताते हैं कि एक टपकते नल से प्रति सेकेंड एक बूंद बर्बाद होने से एक माह में 760 लीटर पानी बर्बाद हो जाता है. इसके अलावा वाहनों को धोने के लिए खोली गई दुकानों से भी जल का लगातार दुरुपयोग किया जा रहा है. कुछ फसलें जैसे पीपरमिंट की खेती में पानी बहुत लगता है. हमारे भूजल स्तर के गिरने का एक कारण ये भी है. इसके अलावा लगातार धरती के पेट को छलनी किया जा रहा है. जगह-जगह बोरिंगे हो रही हैं. सबमर्सिबल लगाकर पानी का दोहन किया जा रहा है. जल संरक्षण के लिए लोग गंभीर नहीं हैं. कुंए खत्म हो रहे हैं. तालाब सूख रहे हैं. रेन वाटर हार्वेस्टिंग न करने से वर्षा का पानी बह जा रहा है.

आदतें बदलने से बच सकता है पानी :एक अध्ययन में पाया गया कि मनुष्य अपनी आदतों को बदल ले तो पानी की बर्बादी को रोका जा सकता है. आंकड़ों के मुताबिक पूरी पृथ्वी का 70 फीसदी भाग जल से भरा है लेकिन इस 70 फीसदी पानी में से केवल एक फीसदी पानी ही पीने योग्य है. बाकी पानी खारा है.

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