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पद्मश्री प्राप्त प्रगतिशील किसान ने 'पर्यावरण संरक्षण' की जलायी ऐसी अलख कि बने रोल मॉडल - बाराबंकी

राम सरन वर्मा राजधानी लखनऊ से सटे बाराबंकी जिले के एक छोटे से गांव दौलतपुर के किसान हैं. वह आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. खेती में जो करिश्मा किया उसी का नतीजा है कि उन्हें पद्मश्री जैसे बड़े सम्मान से नवाजा गया.

पद्मश्री प्राप्त प्रगतिशील किसान ने 'पर्यावरण संरक्षण' की जलायी ऐसी अलख कि बने रोल मॉडल
पद्मश्री प्राप्त प्रगतिशील किसान ने 'पर्यावरण संरक्षण' की जलायी ऐसी अलख कि बने रोल मॉडल

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Published : Jun 4, 2021, 1:08 PM IST

Updated : Jun 7, 2021, 4:00 PM IST

बाराबंकी :वर्तमान समय में जब कोरोना महामारी के चलते शुद्ध हवा और ऑक्सीजन की कमी देखी जा रही है, ऐसे में पर्यावरण संरक्षण की उपयोगिता और भी बढ़ जाती है. तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी हमारे समाज में ऐसे लोग हैं जो पर्यावरण को संरक्षित करने में लगे हैं. बाराबंकी के एक ऐसे ही प्रगतिशील किसान हैं राम सरन वर्मा जो पिछले कई वर्षों से खेती में नए-नए प्रयोग कर न केवल उसे लाभकारी बना रहे हैं बल्कि पर्यावरण को संरक्षित भी कर रहे हैं.

उन्नत खेती के साथ पर्यावरण संरक्षण में लगे रामसरन बन चुके हैं रोल मॉडल

राम सरन वर्मा राजधानी लखनऊ से सटे बाराबंकी जिले के एक छोटे से गांव दौलतपुर के किसान हैं. वह आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. खेती के जादूगर के नाम से मशहूर राम सरन ने जो अजूबा कर दिखाया वो दूसरे किसानों के लिए एक मिसाल है. खेती में जो करिश्मा किया उसी का नतीजा है कि उन्हें पद्मश्री जैसे बड़े सम्मान से नवाजा गया. दिनों दिन दूषित हो रहे पर्यावरण से राम सरन खासे चिंतित हैं. उनका कहना है कि मनुष्य को जीवित रहना है तो उसे पर्यावरण को बचाने के लिए आगे आना होगा.

हरियाली लाकर बढ़ा रहे ऑक्सीजन

24 घंटे में एक स्वस्थ इंसान को औसतन 550 लीटर ऑक्सीजन की आवश्यकता है. वहीं, एक पेड़ एक साल में तकरीबन 83 हजार लीटर ऑक्सीजन देता है. इसे एक व्यक्ति डेढ़ सौ दिनों में ग्रहण कर जाता है. कल कारखानों और वाहनों से निकलने वाले धुंए, रेफ्रीजिरेटर से निकलने वाली गैसों, अंधाधुंध पेड़ों के कटान के चलते दिनों दिन पर्यावरण दूषित हो रहा है. राम सरन की कोशिश है कि इलाके में हरियाली लाकर और तकनीकों के जरिये खेती कर ज्यादा से ज्यादा हवा को शुद्ध किया जाय ताकि ऑक्सीजन की मात्रा बढ़े.

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जैविक खादों का करते हैं प्रयोग

देश में साल 1965-66 में कृषि को बढ़ावा देने के लिए शुरू हुई हरित क्रांति के बाद से देश की जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई. लिहाजा इस बढ़ती हुई आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए अत्यधिक रासायनिक खादों और पेस्टिसाइड्स का जमकर प्रयोग हुआ. इनका प्रयोग पर्यावरण के लिए घातक हैं. इससे जमीन की उर्वरा शक्ति कम होती है. यही वजह है कि राम सरन अपनी फसलों में गोबर और जैविक खाद का प्रयोग करते हैं.

जल संरक्षण को भी दे रहे बढ़ावा

परंपरागत खेती से हटकर केला, स्ट्रॉबेरी, तरबूज, टमाटर, आलू और शिमला मिर्च जैसी खेती करने वाले रामसरन वर्मा इन फसलों की पैदावार बढ़ाने में आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करते हैं. खास ढंग से इनकी सिंचाई करते हैं. इससे पानी की खपत कम होती है. इसके पीछे इनकी सोच है कि पृथ्वी पर पर्यावरण का संतुलन बनाये रखने के लिए जल संरक्षण जरूरी है. यही नहीं, इनका जोर जल स्रोतों को बढ़ाने पर भी है. राम सरन कहते हैं कि खाली और बेकार पड़ी जमीनों पर किसान तालाब बनवाकर दोहरा लाभ ले सकते हैं. मत्स्य पालन कर आर्थिक लाभ के साथ वाटर लेवल भी बढ़ा सकते हैं.

फसल अवशेषों को जलाने की बजाय बनाते हैं खाद

दूसरे तमाम किसानों की तरह रामसरन वर्मा फसल अवशेषों को खेतों में जलाने की बजाए उनको खाद में तब्दील कर देते हैं. रामसरन की सलाह है कि किसान पराली जलाने से बचें. इससे पर्यावरण को नुकसान होने से बचाया जा सके.

Last Updated : Jun 7, 2021, 4:00 PM IST

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