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बाराबंकीः हाथीपांव के खिलाफ 17 फरवरी से शुरू होगा विशेष अभियान

बाराबंकी जिले में 17 से 29 फरवरी तक फाइलेरिया मुक्त भारत बनाने के लिए अभियान शुरू किया जा रहा है. भारत सरकार इस रोग को वर्ष 2021 तक समाप्त करने के लिए संकल्पित है. इस अभियान के लिए जिले में 2800 टीमें बनाई गई हैं, जो घर-घर जाकर दवाई खिलाएंगी.

फाइलेरिया मुक्त भारत
फाइलेरिया मुक्त भारत

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Published : Feb 15, 2020, 7:23 AM IST

बाराबंकीः फाइलेरिया दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी बीमारी है, जो बड़ी तादाद में लोगों को विकलांग बना रही है. वर्ष 2021 तक फाइलेरिया मुक्त भारत बनाने के लिए आगामी 17 फरवरी से जिले में अभियान चलाकर घर-घर दवाई खिलाई जाएगी. इस अभियान की खास बात यह है कि इसके तहत लोगों को दवाई देनी नहीं बल्कि अपने सामने ही खिलानी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक भारत मे लगभग साढ़े चार लाख लोग फाइलेरिया से पीड़ित हैं. वहीं बाराबंकी जिले में माइक्रो फाइलेरिया रेट 1.09 है.

17 फरवरी से शुरू होगा विशेष अभियान.

29 फरवरी तक चलने वाले इस अभियान के लिए 2800 टीमें बनाई गई हैं, जो घर-घर जाकर दवाई खिलाएंगी. इनकी मॉनिटरिंग के लिए 518 सुपरवाइजर लगाए गए हैं. एक आशा कार्यकर्ता को प्रतिदिन 25 घरों में दवाई खिलानी है. जिले की जनसंख्या सवा 36 लाख के करीब है. इसमें से 2 वर्ष तक के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और अत्यधिक बीमार लोगों को छोड़कर बाकी सभी को दवाई खिलानी है.

जानलेवा बीमारी नहीं हैफाइलेरिया
सीएमओ डॉ. रमेश चन्द्रा ने बताया कि फाइलेरिया भले ही जानलेवा बीमारी नहीं है, लेकिन यह मरीजों को मृत समान बनाकर रख देती है. इसमें पैर बुरी तरह सूज जाते हैं, पुरुषों के अंडकोष और महिलाओं के ब्रेस्ट पर भी इसका बुरा असर होता है. समय रहते दवाई खा ली जाए, तो इस बीमारी से बचा जा सकता है.

कैसे होता है फाइलेरिया
मलेरिया की तरह फाइलेरिया भी मच्छर के काटने से ही होता है. इसके परजीवी रात में सक्रिय होते हैं, इसीलिए स्वास्थ्य विभाग नाइट ब्लड सर्वे कराता है. रात में ब्लड स्लाइड की जांच करने पर माइक्रोस्कोप से परजीवी देखे जा सकते हैं. इसके लक्षण-पैरों और हाथों में सूजन आ जाना, पैर फूल जाना, जिसे हाथी पांव भी कहते हैं. साथ ही पुरुषों के अंडकोष और महिलाओं के स्तन में सूजन आ जाना भी इसके लक्षण हैं.

कैसे करें बचाव
फाइलेरिया बीमारी से बचने के लिए मच्छरों से बचाव बहुत जरूरी है, जिसके लिए स्वास्थ्य विभाग अभियान चलाकर लोगों को दवाई खिलाता है. इसमें एक गोली एल्बेंडाजोल और उसके साथ डीईसी की गोलियां खिलाई जाती हैं. एल्बेंडाजोल सभी को एक गोली खिलाई जाती है, जबकि डीईसी की गोली 2 से 5 वर्ष तक एक गोली, 6 से 14 वर्ष तक 2 गोलियां, 15 वर्ष से ऊपर के सभी को 3 गोलियां खिलाई जाती हैं. खास बात यह कि ये दवाइयां खाली पेट नहीं खानी होती हैं.

अभियान के लिए 2800 टीमें बनाई गई हैं, जो घर-घर जाकर दवाई खिलाएंगी. इनकी मॉनिटरिंग के लिए 518 सुपरवाइजर लगाए गए हैं. एक आशा कार्यकर्ता को प्रतिदिन 25 घरों में दवाई खिलानी है.
डॉ. आरसी वर्मा, नोडल अधिकारी

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