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नाग पंचमी विशेष: अगर आपके घर में आते हैं सांप तो इस मंदिर में आइए, यहां की मठिया घर में रखने से दूर हो जाएंगी परेशानियां - nag panchami 2022

बाराबंकी के श्री नाग देवता मंजीठा धाम (Shri Nag Devta Manjitha Dham) में नाग देवता (Nag devta) को मंदिर में दूध और चावल से भरी मिट्टी की मठिया चढ़ाने से सांपों के भय से मुक्ति मिल जाती है.

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नाग पंचमी विशेष

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Published : Aug 2, 2022, 4:47 PM IST

बाराबंकी: अगर आपके घरों में सांप आते हैं या आपको सांपों से भय बना रहता है, तो आप बाराबंकी के श्री नाग देवता मंजीठा धाम (Shri Nag Devta Manjitha Dham) आइए. मान्यता है कि यहां के नाग देवता (Nag devta) को मंदिर में दूध और चावल से भरी मिट्टी की मठिया चढ़ाने से सांपों के भय से मुक्ति मिल जाती है. जी हां, सैकड़ों वर्षों से तो यहां यही परंपरा (Tradition) चली आ रही है. देखिए हमारी इस विशेष रिपोर्ट में.....

बाराबंकी-हैदरगढ़ (Barabanki-Haidargarh) मार्ग पर जिला मुख्यालय से तकरीबन 6 किमी दूर मंजीठा गांव में स्थित ये है श्री नाग देवता मंदिर (Shri Nag Devta Manjitha Dham). वैसे तो यहां स्थित नाग देवता मंदिर में श्रद्धालुओं का पूरे साल आना जाना लगा रहता है, लेकिन हर साल सावन (savan) के महीने में यहां भव्य मेला लगता है. नाग पंचमी (nag panchami) के दिन तो यहां आस-पास के जिलों से हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं. दूध और चावल (milk and rice) से भरी मठिया चढ़ाकर मन्नतें मांगते हैं. मान्यता है कि जिनके घर में सांप आते हैं या जिन्हें सांपों से भय बना रहता है, वे यहां की मठिया घरों में ले जाकर रख देते हैं और उससे छुटकारा पा जाते हैं. यहां की मठिया ले जाकर लोग अपने घरों में रख देते हैं, जिससे घरों में कोई भी विषैला जीव-जन्तु नहीं आता.

अगर आपके घर में आते हैं सांप तो इस मंदिर में आइए

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मंदिर के इतिहास की बाबत लोगों के अलग-अलग मत है. बताया जाता है कि इस पूरे इलाके में कभी घना जंगल था और इधर से महात्मा बुद्ध (Mahatama Buddh) गुजरे थे. वहीं, कुछ लोगों का मत है कि महात्मा बुद्ध के शिष्य ने यहां तपस्या की थी. तपस्या के दौरान ही भगवान ने उन्हें सर्प रूप में दर्शन दिया था. तपस्वी ने नाग देवता को दूध और चावल दिया और तभी से यह परंपरा शुरू हुई.

श्री नाग देवता मंजीठा धाम
वहीं, तमाम लोगों का मानना है कि घने जंगल के इसी स्थान पर नाग देवता का वास था. लिहाजा लोग इधर से गुजरने से डरते थे, लेकिन एक दिन जौनपुर के बाबा नागादास (Nagadas) इधर से गुजरे. उन्होंने यहीं रुककर तपस्या की और नाग देवता को रुष्ट होने से मनाया. बाबा नागदास (Baba Nagadas) ने आषाढ़ पूर्णिमा को नाग देवता को दूध पिलाया और तब से यह परम्परा चली आ रही है.
श्रद्धालु
बताया जाता है कि इस स्थान पर सांपों की बाम्बी (सांपों की बिल) थी. एक दिन लोगों ने इसकी साफ-सफाई का मन बनाया, लेकिन कामयाब नहीं हो सके. लिहाजा धीरे-धीरे इसी स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया गया. शरीर पर मस्से हों या फोड़े-फुंसियां, शरीर पर चकत्ते हों या कोई और रोग, दूर-दराज से श्रद्धालु यहां आकर न केवल रोग मुक्त हो जाते हैं, बल्कि घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली आ जाती है. नाग पंचमी के दिन दूर-दराज से संपेरे भी आकर नाग देवता के इस मंदिर में हाजिरी लगाना नहीं भूलते.
श्रद्धालु
पिछले कई वर्षों से यहां आस्था और श्रद्धा का इसी तरह जन सैलाब उमड़ता है. भारी भीड़ को देखते हुए जिला प्रशासन पूरी तरह एलर्ट रहता है. दर्शन करने में किसी श्रद्धालु को कोई दिक्कत न हो लिहाजा जगह जगह पुलिस बल तैनात रहता है.

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