बाराबंकी: दशहरे के त्योहार की तैयारियां जोरों पर चल रही हैं. यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. वहीं बाराबंकी का एक मुस्लिम परिवार पिछले पांच दशकों से रावण के पुतले बनाकर समाज से बुराई को खत्म करने में लगा हुआ है. रावण बनाने के पुश्तैनी काम मे लगे अहमद हुसैन भी चाहते हैं कि देश-दुनिया से बुराइयां दूर हों और हिंदू-मुस्लिम समेत सभी मजहबों के लोग मिलजुल कर रहें.
पुश्तैनी काम को दे रहे हैं अंजाम
बाराबंकी के पीरबटावन मोहल्ले के अहमद हुसैन बुराई के प्रतीक रावण और मेघनाद को बनाने में लगे हुए हैं. अहमद अपने पुश्तैनी काम को अंजाम दे रहे हैं. पहले ये पुतले इनके दादा बनाते थे फिर इनके पिता हनीफ ने ये काम संभाला और अब ये अपने भांजे के साथ मिलकर पिछले 15 वर्षों से इस काम को कर रहे हैं.
बाराबंकी में मुस्लिम परिवार बना रहा रावण नहीं मिल पाता मुनासिब मेहनताना
नगर की रामलीला कमेटी ने इनको ये काम दे रखा है. अहमद हुसैन अपने परिवार के साथ कमेटी द्वारा दिये गए एक गोडाउन में जिंदगी गुजारते हैं. हालांकि मेहनताना कम मिलने का दुख जरूर है लेकिन, बुराई खत्म करने के हिस्सेदार बनने का मौका मिलने से इनमें खुशी भी रहती है. ये परिवार चाहता हैं कि मुल्क में अमन चैन बना रहे, यहां से बुराइयां खत्म हो और सभी धर्मों के लोग मिलजुल कर रहें.
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महीने भर पहले से ही शुरु हो जाती हैं तैयारियां
दशहरा आने के करीब महीने भर पहले से ही ये रावण बनाने की तैयारियां शुरू कर देते हैं. बांस लाकर उसकी खपच्चियां बनाते हैं, फिर उससे ढांचा तैयार कर उसको विशेष आकार देते हैं. पहले ढांचे को पुराने अखबार और दूसरे कागजों से ढका जाता है. उसके बाद उसपर अबरी, पन्नी लगाकर उसको असली रुप में लाते हैं. रावण और मेघनाद के पुतलों की पहचान दूर से ही हो जाय इसलिए दोनों पुतलों को खास ढंग से बनाया जाता है.