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किसी भी मजहब की सोच तंग नहीं होनी चाहिए, इंसानियत का धर्म सबसे बड़ा धर्म: मालिनी अवस्थी

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Published : Oct 23, 2019, 9:28 AM IST

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में देवा शरीफ की मजार पर मेला आयोजित किया गया है. वहीं इस दौरान कार्यक्रम में पहुंची पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. देखें रिपोर्ट...

मालिनी अवस्थी से खास बातचीत.

बाराबंकी:देवा शरीफ मेले में पहुंची पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कहा कि इंसानियत का धर्म सबसे बड़ा होता है. साथ ही उन्होंने कहा कि किसी भी मजहब की सोच तंग नहीं होनी चाहिए. मालिनी अवस्थी ने कहा कि सूफी संतों की बातों को अपनी जिंदगी में उतारने की जरूरत है.

मालिनी अवस्थी से खास बातचीत.

लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने कहा कि लोक संस्कृति अपने ही लोगों के द्वारा उपेक्षा का शिकार हुई. लोक संस्कृति तभी जीवित रहेगी, जब हम उसे अपने जीवन में शामिल करेंगे. यह किसी सरकार के द्वारा संभव नहीं हो सकती है. उन्होंने कहा कि लोकगीतों में इतिहास विद्यमान है, जो वाचिक परंपरा से आया है. गुलामी के काल में कवियों और लेखकों ने गायन और कविताओं के माध्यम से लोक संस्कृति और इतिहास को संरक्षित किया है. लोग भारत के इतिहास को पढ़ना चाहते हैं, लेकिन उसके लिए कंटेंट होना चाहिए.

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बनारस की धरती से बचपन से जुड़ाव होने की बात कहते हुए पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने कहा कि बनारस वह धरती है, जहां पर लोक संस्कृति और लोक परंपरा कभी समाप्त नहीं हो सकती है, क्योंकि यहां का युवा विद्यार्थी और यहां के लोग संस्कृति को जीते हैं. हमारे इतिहास, व्यक्तित्व और परंपराओं के विषय में हमें लिखने की आवश्यकता है लोग जानना चाहते हैं, लेकिन पर्याप्त तथ्य होने चाहिए. गृहमंत्री अमित शाह की बात का समर्थन करते हुए कहा कि हमारे इतिहास को लिखने की आवश्यकता है.

उन्होंने कहा कि हमारे यहां लोकगीत और कथाएं इतिहास से संबंधित हैं. बहुत सारे ऐसे लोकगीत और गीत हैं, जो ऐतिहासिक तथ्यों को अपने आप में समाहित किए हुए हैं और यह कहीं लिखित नहीं है बल्कि वाचिक परंपरा से पीढ़ी दर पीढ़ी मौजूद हैं. ऐसे लोकगीतों से ऐतिहासिक तथ्यों को लिखित करने की आवश्यकता है. देवा शरीफ के बारे में उन्होंने कहा कि यहां से गंगा-जमुनी तहजीब को बढ़ावा मिलता है और आपसी भाईचारा कायम होता है. इंसानियत का धर्म सबसे बड़ा धर्म होता है. उन्होंने कहा कि किसी भी मजहब की सोच तंग नहीं होनी चाहिए. व्यक्ति के सरोकार बड़े होने चाहिए और लोगों में आपसी भाईचारा होना चाहिए. बड़े बुजुर्ग कह गए हैं कि प्रेम सद्भाव और सन्मार्ग पर चलना चाहिए.

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