बाराबंकी:इसे समाजसेवा का जज्बा कहें या फिर पद पर बने रहने की लालसा कि कई पूर्व सांसद और पूर्व विधायक जिला पंचायत सदस्य के जरिये माननीय बनने की रेस में लगे हैं. बाराबंकी में ये साफ देखा जा रहा है. यहां चार बार सांसद और तीन बार विधायक रहे रामसागर रावत जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं पूर्व में विधायक रहीं राजरानी रावत भी जिला पंचायत सदस्य पद पर चुनावी मैदान में उतरी हैं. इनकी निगाहें जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर हैं. 70 वर्ष की उम्र के बावजूद भी रामसागर में गजब का जोश है.
जानकारी देते रामसागर रावत. खांटी सपाई के रूप में है पहचान
रामसागर रावत की पहचान जिले में खांटी सपाई के रूप में की जाती है. सादा जीवन और उच्च विचार वाले रामसागर सपा मुखिया मुलायम के काफी करीबी माने जाते हैं. वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव में उन्हें सफलता नहीं मिली थी. अब वे जिला पंचायत सदस्य पद पर किस्मत आजमा रहे हैं. सिद्धौर चतुर्थ वार्ड से वे पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ रहे हैं.
क्षेत्र का विकास करने की मंशा
विधानसभा सदस्य और लोकसभा सदस्य जैसे महत्वपूर्ण पद पर रहने के बाद जिला पंचायत सदस्य पद पर चुनाव लड़ने के सवाल पर उन्होंने बड़ी ही बेबाकी से जवाब दिया. रामसागर ने कहा कि कोई भी पद छोटा या बड़ा नहीं होता. उन्होंने कहा कि जो रानी का स्तर है, प्रजातंत्र में वही स्तर मेहतरानी का है. लोकतंत्र में सभी लोग, सभी पद बराबर हैं. उन्होंने बताया कि वे हमेशा जमीन से जुड़े रहे हैं. अपने क्षेत्र की जनता के लिए हमेशा कुछ न कुछ करते रहने की इच्छा रही है. इसलिए उन्होंने जिला पंचायत सदस्य पद पर चुनाव लड़ने का मन बनाया है.
कौन हैं रामसागर रावत
रामसागर रावत का जन्म 13 जुलाई 1951 को हैदरगढ़ तहसील के बनीकोडर ब्लॉक के धनौली खास गांव में हुआ था. इनके पिता का नाम भभूती था. वर्ष 1968 में इन्होंने व्यक्तिगत परीक्षार्थी के रूप में हाईस्कूल परीक्षा पास की और सन 1969 में उनकी शादी हो गई. सन 1972 में उन्होंने बीटीसी किया और शिक्षण कार्य में लग गए. अध्यापन कार्य करते हुए उन्होंने राजनीति में कदम रखा और जनता पार्टी से जुड़ गए. 1977 के चुनाव में सिद्धौर विधानसभा से जनता पार्टी के टिकट पर वे पहली बार विधायक चुने गए. सन 1980 में वे एक बार फिर सिद्धौर से विधायक बने. उसके बाद इन्होंने लोकदल का दामन पकड़ लिया और लोकदल के टिकट पर सन 1986 में एक बार फिर विधायक बने. वर्ष 1984 में रामसागर पहली बार लोकदल से लोकसभा का चुनाव लड़े, लेकिन हार गए.
बढ़ता गया राजनीतिक सफर
सन 1989 में हुए आम चुनाव में वे जनता दल से पहली बार सांसद बने. सन 1991 में जनता पार्टी से प्रत्याशी के रूप में राम सागर एक बार फिर सांसद बने. सन 1996 में राम सागर ने समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा और जीते. सन 1998 में हुए चुनाव में समीकरण गड़बड़ाया तो चुनाव हार गए, लेकिन 1999 में स्थिति मजबूत की और एक बार फिर सांसद बनकर दिल्ली पहुंच गए. रामसागर को कभी भी इस बात का मलाल नहीं रहा कि तीन बार विधायक और चार बार सांसद होने के बाद भी पार्टी के प्रमुख नेताओं ने उनको कभी भी प्रदेश और देश के कैबिनेट में जगह नहीं दी.
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मुलायम का नहीं छोड़ा साथ
तकरीबन, एक दशक पूर्व जब जिले के कद्दावर नेता बेनी वर्मा और मुलायम सिंह की खटपट हुई तो बेनी ने सपा से किनारा कर लिया, लेकिन रामसागर डटे रहे थे. लोगों को लगा था कि शायद रामसागर बेनीप्रसाद के साथ चले जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. साल 2004 और 2009 में राजनीतिक स्थितियां बदल गई. राम मंदिर और बसपा की सोशल इंजीनियरिंग के चलते समीकरण बदल गए, लिहाजा 2004 और 2009 दोनों चुनाव में राम सागर परास्त हो गए. लगातार दो चुनाव हारने के बाद पार्टी में उन को लेकर विरोध शुरू हो गया. उनके विरोधी आगे आ गए लिहाजा 2014 में पार्टी ने उनका टिकट काट दिया. टिकट काटे जाने के बाद भी रामसागर निराश नहीं हुए, उन्होंने सक्रियता बनाए रखी साथ ही हाईकमान से संपर्क बनाए रखा जिसका नतीजा हुआ कि पार्टी ने फिर से 2019 में उन पर भरोसा जताते हुए उन्हें प्रत्याशी बनाया था, लेकिन इस चुनाव में भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था.
नजर अध्यक्ष की कुर्सी पर
जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर निशाना के सवाल पर रामसागर रावत ने कहा कि सदस्य बनकर आने पर पार्टी के नेता जो फैसला करेंगे उन्हें मंजूर होगा.