बाराबंकी:यूपी की राजधानी लखनऊ और धर्म नगरी अयोध्या के बीच स्थित बाराबंकी जिले की 6 विधानसभाओं में से एक है दरियाबाद विधानसभा. बाराबंकी जिले की ये विधानसभा अयोध्या लोकसभा क्षेत्र में आती है. गोंडा और अयोध्या जिलों की सीमाओं से सटी ये विधानसभा अपने आप मे कई इतिहास समेटे है. यही वो विधानसभा है जहां से दिग्गज नेता बेनीप्रसाद वर्मा ने पहली बार जीत हासिल कर राजनीति के कई आयाम गढ़े.इस सीट पर ज्यादातर कांग्रेस और सपा ही हावी रही. हालांकि अब तक तीन बार भाजपा भी अपना भगवा फहरा चुकी है. बसपा का अभी तक यहां खाता भी नही खुल सका है.
बाराबंकी से पहले दरियाबाद नाम से जाना जाता था जिला
बाराबंकी जिला पहले दरियाबाद के नाम से जाना जाता था.कहते हैं इसे अवध के वायसराय दरियाब खान ने वर्ष 1444 में बसाया था.उस वक्त ये इलाका भाड़ जनजाति के आतंक से प्रभावित था.दरियाब खान ने भाड़ जनजाति से इसे मुक्त कराया और तब से इसका नाम दरियाबाद हो गया.वर्ष 1858 तक ये दरियाबाद जिला रहा उसके बाद वर्ष 1859 में जिला मुख्यालय को नवाबगंज में स्थानांतरित कर दिया गया जिसे अब बाराबंकी कहते हैं.
दरियाबाद विधानसभा-270: बेनी प्रसाद वर्मा ने पहली बार इस सीट से जीतकर गढ़े कई आयाम - बेनी प्रसाद वर्मा
बाराबंकी जिला पहले दरियाबाद के नाम से जाना जाता था. कहते हैं इसे अवध के वायसराय दरियाब खान ने वर्ष 1444 में बसाया था. उस वक्त ये इलाका भाड़ जनजाति के आतंक से प्रभावित था. दरियाब खान ने भाड़ जनजाति से इसे मुक्त कराया और तब से इसका नाम दरियाबाद हो गया. वर्ष 1858 तक ये दरियाबाद जिला रहा उसके बाद वर्ष 1859 में जिला मुख्यालय को नवाबगंज में स्थानांतरित कर दिया गया, जिसे अब बाराबंकी कहते हैं.
दरियाबाद विधानसभा-270
दरियाबाद मौलाना अब्दुल माजिद दरियाबादी के नाम से भी जाना जाता है.मौलाना अब्दुल माजिद के दादा मुफ़्ती मजहर करीम को ब्रिटिश राज के खिलाफ फतवे पर हस्ताक्षर करने के लिए अंडमान की काला-पानी की सजा सुनाई थी. मौलाना माजिद दरियाबादी एक मशहूर लेखक और साहित्यकार थे.उन्होंने अंग्रेजी,उर्दू,अरबी भाषा मे तकरीबन 50 से ज्यादा किताबें लिखी.उनकी अंग्रेजी में लिखी पुस्तक 'द साइकोलॉजी ऑफ लीडरशिप' बहुत ही पापुलर है.पवित्र कुरान की अंग्रेजी में व्याख्या करने के साथ ही उर्दू में लिखी उनकी 'तफ़्सीर ए माजिदी' बहुत चर्चित है. हैदरगढ़ विधानसभा से वर्ष 1969 में विधायक रही सैदनपुर तालुका की हामिदा हबीबुल्लाह उनकी भतीजी थीं.
दरियाबाद के मशहूर सैन्य अधिकारी
दरियाबाद क्षेत्र ने मेजर जनरल अफसर करीम जैसे सैन्य अधिकारी भी दिए हैं. जिन्होंने सामरिक मामलों और सैन्य अध्यन पर कई मशहूर किताबें लिखी हैं. इन्होंने 1962,65 और 71 के युद्धों में हिस्सा लिया था.उनकी लिखी किताबें "काउंटर टेररिज्म- द पाकिस्तान फैक्टर,ट्रांसनेशनल टेररिज्म-डेंजर इन द साउथ,कश्मीर द ट्रबल फ्रंटियर्स बहुत ही प्रसिद्ध हैं.वह भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य भी थे.
भौगोलिक ताना-बाना
दरियाबाद विधानसभा में हिंदी,अवधी और उर्दू बोली जाती है. विधानसभा में सड़को का जाल बिछा है. यही से लखनऊ-अयोध्या हाइवे भी गुजरा है. रेलवे स्टेशन है जहां से कोलकाता, मुम्बई,दिल्ली को आसानी से जाया जा सकता है. इस विधानसभा का कुछ हिस्सा सरयू नदी की तराई क्षेत्र में आता है जहां हर वर्ष बाढ़ आने से लोगों का पलायन होता रहता है. इस क्षेत्र में गन्ना,धान,गेहूं और तिलहन की खेती की जाती है. ज्यादातर लोग खेती और मजदूरी से जुड़े हैं.उद्योग धंधे नही हैं लिहाजा तमाम युवा रोजगार के लिए गैर प्रान्तों और विदेशों में भी हैं.
विधानसभा में मतदाताओं की संख्या
दरियाबाद विधानसभा-270 में कुल मतदाताओं की संख्या 4 लाख 02 हजार 383 है जिसमें 2 लाख 13 हजार 208 पुरुष मतदाता और 01 लाख 89 हजार 163 महिला मतदाता हैं जबकि 12 मतदाता थर्ड जेंडर के हैं.जातिगत आंकड़ों की बात करें तो यहां सबसे ज्यादा दलित और ओबीसी की तादाद है उसके बाद ब्राह्मण,मुस्लिम और ठाकुर वोटर्स हैं.वर्ष 1962 के बाद हुए चुनाव में इस सीट पर 04 बार कांग्रेस,03 बार भाजपा,03 बार सपा,02 बार जनता पार्टी,01 बार भारतीय क्रांतिदल,01 बार जनसंघ और एक बार निर्दल प्रत्याशी का कब्जा रहा है.
हड़हा स्टेट का रहा खासा रसूख
इस सीट पर हड़हा स्टेट के राजीव कुमार सिंह का खासा असर रहा है. यहां से राजीव कुमार सिंह 06 बार विधायक रह चुके हैं. बसपा को छोड़कर हर दल ने राजीव कुमार सिंह का सहारा लेकर यहां अपना परचम लहराया है .पहली बार वर्ष 1985 में उन्होंने कांग्रेस के कृष्णमगन सिंह को निर्दल चुनाव लड़कर हरा कर इस सीट पर कब्जा किया था.ये वो वक्त था जब कांग्रेस पार्टी अपने उरूज पर थी.वर्ष 1989 में राजीव कुमार सिंह कांग्रेस में शामिल हुए और कांग्रेस से चुनाव लड़ा.राजीव ने इस बार अशर्फीलाल को मात दी.वर्ष 1991 में बेनी वर्मा का जादू चला और राधेश्याम वर्मा को सपा से टिकट मिला. इस चुनाव में राधेश्याम ने राजीव कुमार सिंह को हरा दिया.वर्ष 1993 में एक बार फिर सपा के राधेश्याम वर्मा ने कांग्रेस के राजीव कुमार सिंह को मात दे दी.अब तक सूबे में भाजपा की जड़ें मजबूत हो चुकी थी लिहाजा वक्त की नजाकत भांपते हुए राजीव कुमार सिंह ने भाजपा का दामन थाम लिया और 1996 के चुनाव में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़कर सपा को हराकर ये सीट जीत ली.वर्ष 2002 में एक बार फिर राजीव कुमार भाजपा से विधायक बने.हालात बदले तो उन्होंने सपा जॉइन कर ली और वर्ष 2007 में फिर विधायक बने.वर्ष 2012 में पार्टी ने इन्हें फिर टिकट दिया और राजीव कुमार सिंह छठवीं बार विधायक बने.वर्ष 2017 के चुनाव में स्थितियां बदली और वे भाजपा लहर में भाजपा उम्मीदवार सतीश शर्मा से चुनाव हार गए.
सीट जीतने के लिए शुरू हुआ गुणा-गणित
आने वाले विधानसभा चुनाव 2022 के लिए एक बार फिर सभी दलों ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है.तकरीबन 15 वर्ष बाद इस सीट पर फिर से कब्जा करने वाली भाजपा इस सीट को दुबारा खोना नही चाहती.मोदी लहर में जीते विधायक सतीश चंद्र शर्मा पर पार्टी एक बार फिर दांव लगा सकती है तो 2007 और 2012 में दो बार लगातार दूसरे स्थान पर रही बसपा हर हाल में इस सीट को जीतकर अपना खाता खोलने की जुगत में लगी है. सपा भी इस सीट को हथियाने के लिए कोई कोर कसर नही छोड़ना चाहती है तो कांग्रेस भी अपने खोए हुए मुकाम को तलाश रही है. हालांकि अभी किसी दल का कोई प्रत्याशी तय नहीं हो पाया है, लेकिन तमाम संभावित उम्मीदवारों ने अपने-अपने हाईकमान तक दौड़ भाग शुरू कर दी है.
इसे भी पढ़ें-कोरोना के दौरान दर्ज मुकदमे वापस लेने का योगी सरकार ने लिया बड़ा फैसला, 3 लाख से अधिक मुकदमे होंगे वापस