बाराबंकी:ईरानी क्रांति के जनक अयातुल्लाह रूहुल्लाह खुमैनी का बाराबंकी के किंतूर गांव से गहरा नाता है. उनके दादा सैयद अहमद मूसवी हिंदी का जन्म 1790 ईसवी में यहीं पर हुआ था. वह 40 वर्ष की आयु में अवध के नवाब के साथ 1830 ईसवी में जियारत करने इराक के रास्ते ईरान पहुंचे और वहीं पर खुमैन गांव में बस गए, लेकिन अपने हिंदुस्तानी के होने की बात उन्होंने कभी नहीं छोड़ी.
ईरानी क्रांति के जनक अयातुल्लाह रूहुल्लाह खुमैनी का बाराबंकी से गहरा रिश्ता इसलिए है. क्योंकि उनके दादा सैयद अहमद मूसवी हिंदी का 1790 ईसवी में किंतूर गांव में जन्म हुआ था. 1830 ईसवी में उनके दादा अवध के नवाब के साथ धार्मिक यात्रा पर निकले और इराक होते हुए ईरान पहुंचे, जहां खुमैन नाम के गांव में बस गए और यहीं पर इनके पिता अयातुल्लाह मुस्तफा हिंदी का जन्म हुआ. आगे चलकर इस्लामी धर्मशास्त्र के जानकारों में इनका नाम गिना गया. वहीं खुमैन गांव में ही 1902 में अयातुल्लाह रुहुल्लाह खुमैनी का जन्म हुआ, जो बड़े होकर इस्लामी विधिशास्त्र और शरीयत के विद्वान होने के साथ-साथ, पश्चिमी दर्शन शास्त्रों के ज्ञाता भी हुए. इनका मानना था कि अरस्तु तर्क शास्त्र के जनक हैं.
इस्लामी शिक्षा देने का किया काम
इन्होंने लगातार इस्लामी शिक्षा देने का काम किया और ईरान के अराक और कोम शहर में इस्लामी शिक्षा के केंद्रों में पढ़ाने का काम किया. इसी दौरान उन्होंने ईरान की तत्कालीन शहंशाही राजनीतिक प्रणाली का विरोध किया. वह चाहते थे कि राजशाही प्रणाली की जगह विलायत-ए-फकीह मतलब धार्मिक गुरु की संप्रभुता जैसी व्यवस्था हो. यही वजह है कि अमेरिका के शह से चल रही पहलवी सल्तनत ने इनको देश से निकाल दिया. देश से निकाले जाने के बाद भी अयातुल्लाह रूहुल्लाह खुमैनी ने अपना विरोध जारी रखा.