बाराबंकी:पीएम मोदी की आत्मनिर्भर बनने की मंशा को बाराबंकी के किसानों ने अमल में लाना शुरू कर दिया है. यहां के किसानों ने हाइब्रिड धान से मुंह मोड़ते हुए अपना रुख देसी प्रजाति के धान की ओर कर दिया है. यही नहीं तमाम प्रगतिशील किसान देसी धान बोने के लिए किसानों को प्रेरित भी कर रहे हैं.
आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ें किसान
जिले में करीब 2 लाख 40 हजार हेक्टेयर कल्टीवेटेड एरिया है, जिसमें करीब एक लाख 83 हजार हेक्टेयर में धान की फसल पैदा की जाती है. जिले का तकरीबन 80 फीसदी किसान धान की फसल लगाता है. अभी तक किसान हाइब्रिड धान लगाने को प्राथमिकता देते थे, लेकिन अब किसानों ने देसी धान की फसल पैदा करने को प्राथमिकता देनी शुरू कर दी है. अभी तक ज्यादातर हाइब्रिड धान लगाने वाले किसान अब आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ चले हैं. किसानों ने हाइब्रिड धान से मुंह मोड़कर देसी प्रजाति की धान की ओर रुख कर लिया है.
देसी धान के बीज की बिक्री में वृद्धि
पिछले वर्ष राजकीय बीज भंडारों से जहां हाइब्रिड धान के बीज की बिक्री एक हजार क्विंटल के करीब हुई थी. वहीं इस बार ये आधी रह गई है, जबकि देसी धान के बीज की बिक्री अचानक से दोगुनी हो गई है. कृषि विभाग ने पिछले वर्षों की तरह ही इस बार संकर प्रजाति के 6444 गोल्ड, 27-पी 31 और 27-पी 37, यूएस-312, यूएस-382, वीएनआर और टीएसी जैसे संकर धान के बीजों को बीज भंडारण केंद्रों पर बिक्री के लिए रखा था, लेकिन किसानों ने संकर प्रजाति के इन धानों के बीजों को खरीदने में दिलचस्पी नहीं दिखाई.
जिला कृषि अधिकारी ने कही ये बात
जिला कृषि अधिकारी संजीव कुमार बताते हैं कि किसानों का मानना है आत्मनिर्भर बनना है तो देसी अपनाना होगा. इनका उन्होंने बताया कि कुछ कम्पनियां हैं, जो हाइब्रिड धान बेचती हैं और किसानों का पैसा बाहर जाता है. ऐसे में उन्हें देसी अपनाकर अपना पैसा बचाना होगा. यही वजह है कि इस बार किसानों ने देसी अपनाते हुए हाइब्रिड से मुंह मोड़ लिया है.
हाइब्रिड की अपेक्षा देसी अच्छा क्यों?
प्रगतिशील किसान राम किशोर पटेल बताते हैं कि हाइब्रिड धान में लागत ज्यादा लगती है. इसकी फसल में किसानों को देसी प्रजाति के धान की अपेक्षा ज्यादा पानी और उर्वरक देना पड़ता है. इसके बीज का दाम ढाई सौ से तीन सौ रुपये प्रति किलो बिकता है, जबकि देसी प्रजाति के धान का बीज 35 से 50 रुपये किलो तक ही बिकता है. हाइब्रिड बीज से तैयार फसल के धान को बीज के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता, जबकि देसी धान की फसल से तैयार धान को अगले कई वर्षों तक बीज के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है.
इन मामलों में देसी धान हाइब्रिड धान से बेहतर
हाइब्रिड धान बोने से हर वर्ष किसानों को बीज खरीदना होता है, जबकि देसी धान बोने से बीज की समस्या नहीं रहती. अगले वर्ष के लिए किसान उसका प्रयोग कर सकते हैं. ये सही है कि हाइब्रिड धान की पैदावार देसी धान की अपेक्षा ज्यादा होती है, लेकिन इसमें देसी धान से कई गुना लागत लगती है. देसी प्रजाति के धानों को आसानी से बाजारों में बेचा जा सकता है. मिलर्स भी आसानी से खरीद लेते हैं, जबकि हाइब्रिड धान को मिलर्स खरीदने से कतराते हैं. हाइब्रिड धान से मिट्टी की उर्वरकता और उसकी पीएच घटती जाती है, जबकि देसी धान रोगरोधी होता है.