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कभी पोस्ते की खेती से किसान होते थे मालामाल, अब लाइसेंस लेने में भी नहीं दिखा रहे दिलचस्पी - पोस्ते की खेती से किसान होते थे मालामाल

यूपी के बाराबंकी में पोस्ते की खेती करने वाले किसान अब इसके लिए लाइसेंस लेने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. कम रकबे का लाइसेंस और मेहनत ज्यादा होने से इनका रुझान दूसरी खेती की ओर हो रहा है. किसानों का कहना है कि अफीम की खेती में बहुत रिस्क है और कई सालों पहले इसका जो मूल्य था वही आज भी है. इसलिए अब किसानों का इसकी खेती की तरफ रुझान कम होता जा रहा है.

पोस्ते की खेती.
पोस्ते की खेती.

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Published : Apr 14, 2021, 8:06 PM IST

बाराबंकी: हाई रिस्क और मौसम का साथ न देने से कम उपज के चलते किसानों का पोस्ते की खेती से मोहभंग होता जा रहा है. पहले तो विभाग द्वारा बुलाए जाने के बाद भी तमाम किसानों ने लाइसेंस लेने में ही दिलचस्पी नहीं दिखाई. जिन्होंने लाइसेंस लिया भी उनमें से भी 60 फीसदी से ज्यादा किसानों ने अपनी फसल जोत डाली. कम रकबे का लाइसेंस और मेहनत ज्यादा होने से इनका रुझान दूसरी खेती की ओर हो रहा है.

अफीम की खेती में बाराबंकी का बड़ा नाम
काला सोना यानी अफीम की खेती के लिए कभी बाराबंकी का खासा नाम था लेकिन, इधर कुछ वर्षों से किसानों का पोस्ते की खेती से मोहभंग होता जा रहा है. खेती में हाई रिस्क और मौसम के साथ न देने से उपज की कमी ने किसानों को निराश किया है. यही वजह है कि इस सत्र में किसानों ने लाइसेंस लेने में दिलचस्पी नहीं दिखाई और जिन किसानों ने फसल बोई भी तो बीच में ही खराब फसल देख उन्होंने उसमें चीरा नहीं लगाया. विभाग ने 1800 किसानों को पोस्ता खेती करने के लाइसेंस दिए थे. लेकिन महज 785 किसानों ने ही अफीम जमा की है. बाकी ने फसल खराब होने का प्रार्थना पत्र देकर फसल नष्ट करवा दी है.

जानकारी देते संवाददाता.

पोस्ता किसानों का दर्द
अपनी अफीम की तौल कराने आये किसानों का मानना है कि पोस्ते की खेती में रिस्क बहुत है. फसल बोने से लेकर कटने तक लगातार निगरानी करनी पड़ती है. जानवरों और चोरों से बचाने की चुनौती अलग रहती है. कम रकबे का लाइसेंस मिलता है और मेहनत ज्यादा है फिर खराब मौसम से फसल बेकार हो जाती है. यही नहीं अफीम का जो मूल्य वर्षों पहले था वही आज भी है. बढ़ती महंगाई और वक्त के साथ भी इसका मूल्य नहीं बढ़ा.

सूबे के केवल 9 जिलों में होती है अफीम की खेती
पोस्ता की खेती के लिए सूबे में 9 जिले प्रमुख हैं, जिनमें पश्चिम के तीन जिलों के लाइसेंस बरेली यूनिट से जारी किए जाते हैं. जबकि पूर्वी उत्तर प्रदेश के 6 जिलों के लिए लाइसेंस बाराबंकी यूनिट से जारी होते हैं. उत्तर प्रदेश के 9 जिलों बरेली, बंदायू, शाहजहांपुर, लखनऊ, बाराबंकी, फैजाबाद, रायबरेली, मऊ और गाजीपुर में ही पोस्ता की खेती की जाती है. इसमें बदायूं, बरेली और शाहजहांपुर जिलों के किसानों को बरेली यूनिट लाइसेंस जारी करती है जबकि, लखनऊ, बाराबंकी, फैजाबाद, रायबरेली, मऊ और गाजीपुर जिलों के किसानों को बाराबंकी कार्यालय लाइसेंस जारी करता है.

काश्तकारों ने लाइसेंस लेने में नहीं दिखाई दिलचस्पी
पिछले वर्ष जहां 4.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मार्फीन स्ट्रेंथ को मानक बनाया गया था. वहीं इस बार इसे कम कर दिया गया था. यही नहीं इस बार लाइसेंस की संख्या भी बढ़ाई गई थी और पिछले वर्ष की तुलना में एक हजार किसानों को बढ़ाया गया था. इन 6 जिलों के 669 गांवों के 3101 कल्टीवेटर्स को लाइसेंस के योग्य मानते हुए विभाग ने उन्हें लाइसेंस लेने के लिए बुलाया था लेकिन, हैरानी की बात ये रही कि महज 412 गांवों के 1811 काश्तकारों ने ही लाइसेंस लेने में दिलचस्पी दिखाई. इन किसानों ने पोस्ता बोया भी लेकिन, विभागीय नियमों के चलते मानक न पूरा कर पाने के अंदेशे में ज्यादातर किसानों ने अपनी फसल जोत दी. केवल 785 किसानों ने ही अफीम देने के लिए हामी भरी है.

पिछले वर्ष महज 27 किसानों ने जमा की अफीम
पिछले वर्ष बाराबंकी कार्यालय ने 1953 किसानों को लाइसेंस जारी किए थे लेकिन, भारी बारिश और ओलावृष्टि से किसानों की फसलें खराब हो गई थीं. लिहाजा 27 किसानों को छोड़कर बाकी सभी किसानों ने अपनी फसल विभागीय अधिकारियों की देखरेख में जोतवा दी थी. केवल 27 किसानों ने ही अफीम जमा की थी. इस बार करीब 785 किसानों ने अपनी अफीम जमा की है.

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