बाराबंकीः 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आंतरिक सुरक्षा का हवाला देकर देश में आपातकाल (Emergency) की घोषणा कर दी थी. 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनके चुनाव को अमान्य ठहरा दिया था. देश में 21 मार्च 1977 तक कुल 21 महीने तक आपातकाल लागू रहा था. आपातकाल के दौरान बड़ी संख्या में लोगों को जेल में डाल दिया गया था. उन्हें लोकतन्त्रक सेनानी कहा जाता है. ईटीवी भारत की टीम ने एक ऐसे ही लोकतंत्र सेनानी से आपातकाल की यादें साझा कीं.
बाराबंकी के लोकतंत्र सेनानी अजय सिंह गुरु की उम्र आपातकाल के दौरान 18-19 वर्ष की रही होगी जब उन्हें घर से पकड़कर कई गंभीर धाराओं में जेल में डाल दिया गया था.तकरीबन साल भर वह बाराबंकी जिला जेल और उसके बाद छह महीने फैज़ाबाद जेल में बंद रहे. वह बताते हैं कि इमरजेंसी के समय मे जो गलत हो रहा था उसके लिए आवाज उठाने की किसी की भी हिम्मत नही थी, मीडिया पर सख्ती थी लेकिन आज जहां कहीं कुछ गलत दिखाई देता है तो लोग उसका विरोध करते हैं. मीडिया भी मुद्दे उठाता है.
लोकतंत्र सेनानी ने साझा कीं आपातकाल से जुड़ी कड़ुवी यादें. उन्होंने बताया कि आपातकाल के दौरान पति पत्नी से, बेटा पिता से और सभी एक-दूसरे से बात करने से डरते थे. लगता था कहीं उन्हें जेल में न डाल दिया जाए. कई लोगों को उस दौर में जेल की हवा खानी पड़ी थी. मीसा (MISA- maintenance of internal security act) कानून और DIR (defence of india act) के तहत लोकनायक जय प्रकाश नारायण के सहयोगियों, उनके समर्थकों और समाजवादी विचारधारा मानने वालों को जेल भेजा गया था. आरएसएस, विद्यार्थी परिषद और कम्युनिस्टों को भी जेल भेजा गया था.
25 जून 1975 में तत्कालीन राष्ट्रपति फख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा- 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा की थी. स्वतंत्र भारत के इतिहास में ये सबसे विवादित और अलोकतांत्रिक काल था. इस समय सारे चुनाव स्थगित हो गए और नागरिकों के अधिकारों को खत्म कर दिया गया. इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया गया. देश के चौथे स्तंभ प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया गया. प्रधानमंत्री के बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर पुरुष नसबंदी अभियान चलाया गया. जय प्रकाश नारायण ने भी इस अवधि को भारतीय इतिहास का सर्वाधिक काला समय बताया.आपातकाल के दौरान सत्याग्रह करने वालों को जेल में डाल दिया गया. ये लोग 21 मार्च 1977 तक यानि 21 महीने तक जेल में रहे. जेल से छूटने के बाद उन्हें लोकतंत्र सेनानी कहा गया.
आपातकाल में क्या-क्या हुआ. इमरजेंसी में जेल जाने वाले लोकतंत्र सेनानियों को पेंशन मिल रही है. हालांकि अजय सिंह गुरु इसे पेंशन कहने के पक्षधर नही हैं वे इसे सम्मान राशि कहते हैं.कई लोकतंत्र सेनानी पेंशन नही लेते हैं. यहीं के लोकतंत्र सेनानी पंडित राजनाथ शर्मा पेंशन के पक्षधर नही हैं.
वर्ष 2005 में मुलायम सिंह यादव ने अपनी सरकार में लोकतंत्र सेनानियों को बतौर पेंशन 500 रुपये प्रतिमाह देना शुरू किया था. साल भर बाद इसे एक हजार रुपये कर दिया गया. वर्ष 2007 में मायावती सरकार में पेंशन रोक दी. साल 2012 में बनी अखिलेश सरकार ने इसे फिर से शुरू कर दिया और पेंशन की रकम बढ़ाकर तीन हजार रुपये कर दी. एक साल बाद इसे 10 हजार और फिर 15 हजार रुपये कर दिया गया. योगी सरकार में इसे बढ़ाकर 20 हजार रुपये कर दिया. वर्तमान में लोकतंत्र सेनानियों को 20 हजार रुपये पेंशन दी जा रही है.
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