बाराबंकी:जिले में गोवंशों के लिए बने गो आश्रय स्थल उनके मौत का केंद्र बन चुके हैं. गोवंश कटीले तारों की चारदीवारी में सूखा भूसा खाने को मजबूर हैं. जिस गोवंश की मौत हो गई है, उन्हें गो आश्रय स्थल में टीन शेड से ढक दिया गया है. जिनकी मौत काफी पहले हो चुकी है उन्हें नजदीक में ही झाड़ के पास फेंक दिया गया है, जहां उन्हें कौवे, बाज और कुत्ते नोच-नोच कर खा रहे हैं. कुछ जो बीमार हैं और असहाय होकर जमीन पर गिर गए हैं जिनमें अब थोड़ी जान बची है उनके ऊपर भी टीन शेड डाल दिया गया है.
गो आश्रय स्थल पर औषधि केंद्र तो है, लेकिन समय पर कितनी जांच हो पाती है यह कह पाना मुश्किल है. किसी भी गोवंश की स्थिति फिलहाल ठीक दिखाई नहीं दे रही है. सभी की हड्डियां मानो दूर से ही रेखाएं बनाती हुई दिख रही हैं.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक फरवरी से अब तक 73 गोवंश की हुई मौत
इस बारे में सरकारी आंकड़ा बताता है कि जिले में अभी तक कुल 342 आश्रय स्थलों पर वर्तमान में 6892 गाय और गोवंश हैं. 409 गोवंश और गायों को अब तक सम्मानित नागरिकों द्वारा अडॉप्ट किया गया है. कुल 7226 गोवंश की फरवरी से अब तक ईयर टैगिंग की गई है. सरकारी आंकड़े के मुताबिक मात्र 73 गोवंश की मौत हुई है, जबकि सच्चाई इससे अलग है.
हर दिन एक या दो गोवंश की होती है मौत
यदि आंकड़ों पर जाएं तो मई तक ही करीब 50 गाय और गोवंश की मृत्यु हो चुकी थी, जबकि उस समय गो आश्रय स्थलों पर गोवंशों और गायों की संख्या भी कम थी. वर्तमान समय में लगातार कोई ऐसा दिन नहीं बीतता, जब 34 गोशालाओं में से कहीं न कहीं एक या दो मौतें न होती हो. फिर भी फरवरी से अब तक 73 मौत का आंकड़ा बताया जा रहा है. जमीनी स्तर पर मौत का आकंड़ा इससे कहीं ज्यादा है.