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कभी इस गांव में बनती थी अवैध शराब, अब बदल गई तस्वीर

जिस गांव में अवैध शराब को बनाने और बेचने का काम होता था... जिस गांव की महिलाओं से लेकर बच्चे तक अवैध शराब के धंधे में लिप्त थे... जिस गांव के ज्यादातर पुरुष जेल में हैं... अब उस गांव में लोग आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं. गांव की तस्वीर पूरी तरह बदल गई है. यह सब कैसे संभव हुआ, जानने के लिए पढ़ें ईटीवी भारत की यह खास रिपोर्ट...

chainpurwa village barabanki
बाराबंकी के चैनपुरवा गांव की तस्वीर बदली.

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Published : Dec 17, 2020, 7:16 PM IST

बाराबंकी : पुलिस कप्तान ने एक ऐसे गांव की सूरत बदल दी, जिस गांव में अवैध देसी शराब बनाने और बेचने का काम होता था. कल तक जहां गांव की महिलाएं और बच्चे इस गलत धंधे में लिप्त थे, वहीं आज ये महिलाएं दुपट्टे में नॉटिंग कर और मोम के दीये बना कर स्वावलम्बी हो रही हैं. यही नहीं, यहां के बच्चों को पढ़ा लिखाकर मुख्यधारा में लाने की भी शुरुआत हो गई है.

काम करतीं समूह की महिलाएं.

गांव की बदल गई सूरत
जिले के चैनपुरवा गांव की महिलाएं कुछ दिन पहले तक मजबूरन अवैध शराब बनाने के धंधे में लिप्त थीं. तकरीबन चार महीने पहले इस गांव पर पुलिस कप्तान डॉक्टर अरविंद चतुर्वेदी की नजर पड़ी और फिर इस गांव का कायाकल्प हो गया. अब इस गांव की महिलाएं शराब नहीं, बल्कि दुपट्टे में नॉटिंग कर और मोम के दीये बनाकर स्वावलम्बी बन रही हैं.

स्पेशल रिपोर्ट...

गांव में बनाई जाती थी अवैध शराब
रामनगर तहसील के तराई में बसने वाले चैनपुरवा गांव में लगभग 80 घर हैं. खेती बारी और कोई काम-धंधा न होने के साथ-साथ शिक्षा का स्तर भी कम था. लिहाजा यहां के लोग अवैध देशी शराब बनाने के धंधे में लग गए. बच्चे, बूढ़े और महिलाएं भी इस धंधे में लिप्त हो गए और यही इनका मुख्य व्यवसाय बनकर रह गया. जब भी कभी आबकारी टीम या पुलिस की दबिश होती थी, इन पर कार्रवाई होती, लेकिन थोड़े दिन बाद ये फिर अपने धंधे में लग जाते. हालात ये हैं कि गांव के ज्यादातर पुरूष या तो जेलों में हैं या फिर अशक्त हो चुके हैं. गांव वालों ने कई बार इस गलत धंधे को छोड़ने की कोशिश की, लेकिन कोई और रोजगार न होने से इसे नहीं छोड़ पाए.

बच्चों को पढ़ाता युवक.

गांव के बच्चों को दी जा रही शिक्षा
घर के पुरुषों और महिलाओं को काम करते देख बच्चे भी इसी में लग गए. स्कूल गांव से दूर है. लिहाजा बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित हुई. अब एक बार फिर से इन बच्चों को मुख्यधारा में लाने की पहल की गई है. गांव के ही कुछ युवा इन बच्चों को पढ़ा रहे हैं.

पीड़ित लोगों में खुशी की लहर
गांव में कुछ घर ऐसे भी हैं, जो इस गलत धन्धे से दूर थे, लेकिन जब भी पुलिस की रेड होती थी, इन्हें भी उनका कोपभाजन बनना पड़ता था. यही वजह है कि अब इनको खुशी है.

लोगों को जागरूक करते पुलिस अधीक्षक.

पुलिस कप्तान ने बनाई योजना
करीब 4 महीने पहले पुलिस कप्तान डॉक्टर अरविंद चतुर्वेदी की नजर इस गांव पर पड़ी और फिर उन्होंने इस गांव के कायाकल्प की योजना बनानी शुरू की. इसी बीच इनकी मुलाकात मधुमक्खी वाला निमित सिंह से हुई. इन्होंने प्लान किया कि इस गांव के लोगों को मधुमक्खी पालन के लिए प्रेरित किया जाय. लिहाजा इन्होंने लगातार इस गांव में कई बैठकें की. लोगों को जागरूक किया और फिर उन्हें इसके लिए तैयार कर लिया.

बनाए गए महिला समूह
प्रशासन की मदद से गांव में 05 महिला समूह बनाए गए हैं और निमित सिंह ने इन समूहों को मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग दी. उसके बाद गांव में मधुमक्खी के बॉक्स रखवाए गए. साथ ही इन्हें मधुमक्खी का मोम उपलब्ध कराया गया. प्रशासन से सहयोग लेकर इनको मिट्टी के दीये उपलब्ध कराए गए, जिन्हें इन महिलाओं ने मोम के दीये में तब्दील कर दिया. अब इन महिला समूहों को मिठाई के डिब्बे, माथे पर लगाने वाली बिंदी, मशरूम की खेती और पूजा की बाती बनाने का प्रशिक्षण दिए जाने की योजना है. ताकि इनकी आर्थिक स्थिति को मजबूत किया जा सके.

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