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हमने है ठानी, लिखेंगे आत्मनिर्भर भारत की नई कहानी - स्वयं सहायता समूह महिलाएं बांदा

बांदा जिले में स्वयं सहायता समूह की महिलाएं अपने भविष्य को बेहतर बनाने की ओर आग्रसर हैं. दूरदराज से महिलाएं यहां आती हैं और सिलाई, कढ़ाई समेत कई रोजगार से संबंधित काम सीख रही हैं. रोजगार मिलने से महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा है और आत्मनिर्भर भारत के सपने को भी साकार कर रही हैं.

स्पेशल रिपोर्ट
स्पेशल रिपोर्ट

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Published : Feb 14, 2021, 2:32 PM IST

बांदा:उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र पिछड़ेपन और रूढ़िवादी परंपराओं के लिए जाना जाता है. यहां महिलाएं अपने घरों से निकलने से भी कतराती हैं. इस क्षेत्र की ज्यादातर महिलाएं अशिक्षित हैं और रोजगार से कोसों दूर हैं, लेकिन अब यहां की महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं. बुंदेलखंड की महिलाओं का घूंघट ही नहीं बल्कि रूढ़िवादी सोच को दरकिनार कर आगे बढ़ना एक सुखद संदेश है.

स्पेशल रिपोर्ट

महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर
जिले की महिलाएं अब सिलाई, कढ़ाई, पेंटिंग, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बनाना समेत कई काम सीख रही हैं. इससे उन्हें रोजगार मिल रहा है. स्वयं सहायता समूह के माध्यम से काम करने वाली महिलाओं ने बताया कि वह समूह के माध्यम से वे काम कर रही हैं. उन्हें इस काम को करने के बाद अच्छा फायदा भी हो रहा है. महिलाओं का कहना है कि पहले घर का खर्च चलाने में दिक्कत होती थी. अब खुद का रोजगार शुरू करने के बाद घर की हालत में सुधार हो गया है. अब उनकी रोजी-रोटी अच्छे से चल रही है. उन्हें उम्मीद है कि आने वाला उनका समय और बेहतर होगा.

सिलाई सीख बन रही आत्मनिर्भर


आर्थिक स्थिति में सुधार
बता दें की जिले के दूरदराज इलाकों की महिलाएं अब आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर हैं. हजारों महिलाएं स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से आत्मनिर्भर बनकर अपने कल को बेहतर बनाने के लिए आगे आ रही हैं. जिले के नरैनी, बबेरू, जसपुरा और अतर्रा क्षेत्र के दूरदराज के गांवों की महिलाओं ने अब कई तरह के काम शुरू कर दिए हैं. इन कामों में जैसे, सिलाई, कढ़ाई, बिजली के बिल बांटना, ब्यूटी पार्लर, साबुन बनाना, अगरबत्ती बनाना आदि शामिल हैं. इससे इनकी आर्थिक स्थिति में तेजी से सुधार हो रहा है.

समूहों से जुड़ रहीं महिलाएं
मुख्य विकास अधिकारी हरीश चंद्र वर्मा ने बताया कि हमारे लगभग 5 हजार समूह जिले में संचालित हो रहे हैं. इनमें 50 हजार महिलाएं काम कर रही हैं. इन्हें हम अलग-अलग कार्यों में लगा रहे हैं. यह उसमें काम करने को लेकर तेजी से आगे आ रही हैं. समूह के माध्यम से महिलाएं टॉयलेट क्लीनर, साबुन, झाड़ू, अगरबत्ती, दलिया, अचार, पापड़ आदि छोटी-छोटी चीजें बनाना सीख रही हैं. इसके अलावा महिलाओं को बैंक सखी बनाया है.

मिलती है ग्रामीणों को सुविधा
बैंक सखियों काम होता है कि उन्हें काम करने के लिए उपकरण मिल जाते हैं और वह गांव में ही रह कर लोगों के सरकारी भुगतान से संबंधित समस्याओं का निस्तारण करती हैं. बिजली के बिलों का वितरण भी महिलाओं के माध्यम से कराया जा रहा है. इसके लिए महिलाओं को विभाग कमीशन देता है. महिलाओं को अब कोटे की दुकान भी दी जा रही है.

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