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UP Assembly election 2022: यहां कभी नहीं चली साइकिल, मोदी लहर में टूटा था कांग्रेस का तिलिस्म

बांदा सदर विधानसभा सीट (banda sadar 235 Assembly Constituencies) क्षेत्र में लगभग सभी जातियां निवास करती हैं. इस सीट पर ज्यादातर कांग्रेस पार्टी से विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे. हालांकि, 2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर काम आई और प्रकाश द्विवेदी बीजेपी (BJP) से विधायक बने. इस सीट की विडंबना है कि समाजवादी पार्टी (samajwadi party) का कभी खाता नहीं खुला. अब देखना है कि 3 लाख से अधिक मतदाता 2022 के विधानसभा चुनाव में किसे अपना आशीर्वाद देते हैं.

बांदा सदर 235 विधानसभा की डेमोग्राफिक रिपोर्ट
बांदा सदर 235 विधानसभा की डेमोग्राफिक रिपोर्ट

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Published : Sep 19, 2021, 5:59 PM IST

बांदा:उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 (assembly election 2022) के लिए अब कुछ महीने बचे हैं. सभी राजनीतिक दल दल जातीय समीकरण और जीत की रणनीति बनाने में लग गए हैं. सभी राजनीतिक पार्टियां अपने नए-नए वादे और दावे के साथ जनता को रिझाने की कोशिश कर रही हैं. ऐसे में ऋषि बामदेव (sage Bamdev) की तपोस्थली कहे जाने वाले बुंदेलखंड के बांदा में भी चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. बादा जनपद में 4 विधानसभा सीटें हैं. यहां भी हमेशा जातीय समीकरण हावी रहा है. राजनीतिक पार्टियां कोशिश करती हैं जो भी प्रत्याशी बनाया जाए उसकी सभी जातीयों में पकड़ उम्दा हो. हालांकि, विकास के लिहाज से देखा जाए तो जिले ने बहुत ज्यादा तरक्की नहीं की. मसलन, मूलभूत सुविधाओं से अभी तक जनता महरूम है. पेयजल, स्वास्थ्य, शिक्षा समेत तमाम मुद्दों पर जिला पिछड़ेपन का शिकार है.

अगर, बात करें बांदा की सदर विधानसभा सीट 235 की तो यहां पर 2017 के चुनाव में 2 बार से कांग्रेस के विधायक व पूर्व मंत्री रहे विवेक कुमार सिंह को हार का सामना करना पड़ा था. यहां मोदी लहर में बीजेपी के प्रकाश द्विवेदी अच्छे खासे मत पाकर विधायक बने. हालांकि, योगी सरकार (Yogi Sarkar) में विकास के तमाम दावों बीच भी यहां की तस्वीर बदलने में श्री प्रकाश द्विवेदी (MLA Prakash Diwedi) कामयाब नहीं रहे. मूलभूत सुविधाओं के अलावा यहां तमाम खामियां व्याप्त हैं. बांदा की सदर विधानसभा सीट में कुल 3,04,520 मतदाता उम्मीदवारों का भाग्य लिखते हैं. इनमें से 1,66,706 पुरुष मतदाता और 1,37,798 महिला मतदाता अपना जनप्रतिनिधि चुनती हैं. यहां थर्ड जेंडर मतदाताओं की संख्या महज 16 है.

बांदा सदर 235 विधानसभा की डेमोग्राफिक रिपोर्ट

बांदा जनपद के ये हैं विधायक

विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र का नाम / संख्याविधायकराजनीतिक दल
बाँदा – 235 श्री प्रकाश द्विवेदी भारतीय जनता पार्टी
तिन्दवारी – 232 श्री ब्रजेश कुमार प्रजापति भारतीय जनता पार्टी
बबेरु – 233 श्री चंद्रपाल कुशवाहा भारतीय जनता पार्टी
नरैनी – 234 श्री राज करण कबीर भारतीय जनता पार्टी
बांदा सदर सीट में कुल मतदाता.

2017 चुनाव का बांदा सदर सीट का यह था परिणाम
कभी सपा व बसपा का गढ़ कहे जाने वाले बुंदेलखंड में 2017 के चुनाव में ऐसी मोदी लहर चली कि बुंदेलखंड की सभी सीटों पर बीजेपी ने बाजी मारी. यहां की सभी 19 सीटों पर बीजेपी ने अपना परचम लहराया. वहीं, बांदा की सदर विधानसभा-235 सीट में 2017 के चुनाव में कांग्रेस से लगातार 2 बार से विधायक रहे विवेक कुमार सिंह को सपा-कांग्रेस गठबंधन के बावजूद हार का सामना करना पड़ा. उन्हें तीसरे नंबर से संतोष करना पड़ा था. इस चुनाव में बीजेपी के प्रकाश द्विवेदी ने अपने प्रतिद्वंदी बीएसपी के मधुसूदन कुशवाहा को 32,828 वोटों के बड़े अंतर से हराया था. इस सीट की सबसे बड़ी विडंबना यह भी है कि प्रदेश में कई बार सत्ता पर काबिज रही समाजवादी पार्टी को अभी तक जीत नशीब नहीं हुई.

बांद सदर सीट का जातीय समीकरण.


बांदा सदर विधानसभा सीट वीआईपी सीट भी रही है क्योंकि इस सीट से 4 बार के विधायक रहे जमुना प्रसाद बॉस मंत्री रहे हैं तो वहीं इस सीट से 3 बार के विधायक रहे विवेक कुमार सिंह भी सरकार में मंत्री रहे हैं. इस सीट को वीआआईपी इसलिए भी माना जाता रहा है क्योंकि बीएसपी की सरकार में यहां के नसीमुद्दीन सिद्दीकी कद्दावर मंत्री की भूमिका में रहे.

बांदा सदर सीट से अब तक के विधायक

मूलभूत सुविधाओं से वंचित है शहर


इस विधानसभा क्षेत्र में मूलभूत समस्याएं ही हमेशा मुद्दा रहती हैं. शहर में पानी और बिजली की समस्या आम है. उच्च शिक्षा के लिए नौजवानों को अन्य शहरों का रुख करना पड़ता है. हालांकि, बसपा सरकार में मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दकी के प्रयास से जनपद को राजकीय एलोपैथिक मेडिकल कॉलेज की सौगात जरूर मिली, लेकिन अन्य कई बुनियादी व महत्वपूर्ण सेवाओं के लिए कानपुर, लखनऊ या अन्य शहरों की तरफ देखना पड़ता है.

बांदा सदर सीट से अब तक के विधायक

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वहीं ग्रामीणों क्षेत्रों में सड़क, बिजली, पानी और अन्ना जानवर सबसे बड़ा मुद्दा बनते हैं. हालांकि, 2017 चुनाव के बाद प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई योगी सरकार ने अन्ना जानवरों से किसानों को निजात दिलाने के लिए करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाकर गौशालाएं और वृहद गोसंरक्षण केंद्र तो बनवाये, लेकिन खराब प्रबंधन के चलते अन्ना जानवर आज भी किसानों के लिए मुसीबत का सबब हैं. आज भी आवारा घूमते जानवर किसानों की फसलों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा रहे हैं. वहीं सरकार का गड्ढामुक्त अभियान भी यहां फेल साबित हुआ है. सरकार ने सड़कों के गड्ढे भरने का काम तो किया, लेकिन कुछ दिनों बाद यहां की सड़कें फिर टूटकर जर्जर हो गईं. उम्मीद थी योगी सरकार में शहर में पानी की समस्या दूर होगी, लेकिन आज भी शहरी जनता पानी के लिए परेशान है. वादों के विपरीत न तो शहर का रिंग रोड बना और न ही बाईपास की हालत ही सुधरी. अब एक बार फिर चुनाव सिर पर हैं तो वादों की झड़ी लगना स्वाभाविक है. ऐसा माना जा रहा है कि इस बार के चुनाव में भी यही बुनियादी मुद्दे हावी रहेंगे.

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