बांदा:बांदा में मकर संक्रांति के मौके पर एक ऐसा मेला लगता है, जिसे आशिकों का मेला कहा जाता है और दो दिनों तक चलने वाले इस मेले को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. वहीं, यहां पर एक नटबली बाबा का मंदिर भी बना है, जहां प्रेमी जोड़ों समेत हजारों लोग मत्था टेकने के लिए पहुंचते हैं और पूजा-अर्चना कर मन्नत मांगते हैं. ऐसा माना जाता है कि यहां पर जो भी मन्नत मांगी जाती है, वो पूरी हो जाती है. खासकर प्रेम की चाहत पाने वाले लोगों की. बता दें कि यह मेला सैकड़ों वर्षों से अनवरत मकर संक्रांति पर आयोजित होता आ रहा है और इस दौरान यहां सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है.
दो दिनों तक चलता है भूरागढ़ में ये मेला
बता दें कि मकर संक्रांति के अवसर पर बांदा शहर के केन नदी के किनारे स्थित भूरागढ़ के किले में दो दिनों तक यह मेले चलता है. जिसे आशिकों का मेला भी कहा जाता है. यहां पर भूरागढ़ के किले की प्राचीर के नीचे बना नटबली मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है. यहां पर दो दिनों तक मेले को देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ता है और जो भी लोग मेला देखने आते हैं वे पहले यहां नटबली बाबा के मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं. इसके बाद वो मेला देखते हैं.
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एक नटबली करता था राजा की बेटी से प्यार...
ऐसा कहा जाता है कि लगभग 600 साल पहले महोबा जिले के सुगिरा क्षेत्र के रहने वाले नोने अर्जुन सिंह भूरागढ़ दुर्ग के राजा थे. यहां से कुछ दूर मध्य प्रदेश के सरबई क्षेत्र के एक नट जाति का 21 साल का युवा बीरन यहां पर नौकर था. साथ ही वह तंत्र-मंत्र का भी जानकार था व खेल, तमाशे व करतब दिखाने का भी काम करता था. ऐसा कहा जाता है कि राजा की बेटी को इस नट बीरन से प्यार हो गया था और राजा की बेटी ने इसी बीरन से शादी करने की जिद राजा के सामने ठान ली थी.
जिस पर राजा नोने अर्जुन सिंह ने अपनी बेटी के सामने शर्त रखी थी कि अगर बीरन नदी के उस पास स्थित बाम्बेश्वर पर्वत से किले तक एक सूत के धागे की रस्सी पर चढ़कर किले तक आ जाएगा तो राजा उसकी शादी अपनी बेटी से कर देगा. साथ ही अपना आधा राज-पाठ बीरन को दे देगा. जिस पर प्रेमी नट ने राजा की शर्त को स्वीकार कर लिया और वह नदी के दूसरी तरफ स्थित बाम्बेश्वर पर्वत से सूत की रस्सी के सहारे नदी पार कर ली और वह किले की प्राचीर तक पहुंच गया.
राजा को जब यह लगा कि बीरन यह चुनौती को पूरी कर लेगा तो उसने उस रस्सी को काट दिया. जिससे वीरन की किले की प्राचीर के पास गिरकर मौत हो गई. जिसके बाद राजा की बेटी को जब पता चला तो उसने भी किले से कूदकर अपनी जान दे दी. जिसके बाद नट बीरन व राजा की बेटी की यहां पर समाधि बनाई गई. तभी से संक्रांति के अवसर पर यहां लोग आते हैं और पूजा-पाठ करने के साथ ही मेले का लुप्त उठाते हैं.
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