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बलरामपुर : अलौकिक है पचपेड़वा के इस शिव मंदिर की कहानी

सावन के महीने में शिव भक्त शिव की भक्ति में लीन रहते हैं. बलरामपुर में एक ऐसा शिव मंदिर है जो 200 साल पुराना है. शिवगढ़ धाम मंदिर में लोग प्राकृतिक शिवलिंग के दर्शन के लिए आते हैं. इसके अलावा पड़ोसी राष्ट्र नेपाल से भी कई शिवभक्त आते रहते हैं.

शिवगढ़ धाम मंदिर की अलौकिक कहानी

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Published : Jul 20, 2019, 9:53 PM IST

बलरामपुर: जिले के पचपेड़वा क्षेत्र के बिशनपुर टनटनवा में ग्राम सभा में 200 साल से अधिक पुराना एक शिव मंदिर स्थित है. इसका नाम शिवगढ़ धाम मंदिर है, जो जिले के साथ-साथ पड़ोसी राष्ट्र नेपाल के तमाम भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. मंदिर में आज भी लोग प्राकृतिक शिवलिंग का दर्शन करते हैं. यहां प्रत्येक सोमवार, शुक्रवार, महाशिवरात्रि, कजलीतीज पर श्रद्धालुओं का तांता लग जाता है.

शिवगढ़ धाम मंदिर की अलौकिक कहानी

जलाभिषेक करने के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ भी जुटती है. सावन महीने में शिव मंदिरों की छटा अलौकिक हुआ करती है. यहां पर हजारों लाखों की संख्या में भक्त आते हैं और अपने आराध्य देवाधिदेव महादेव की पूजन अर्चन करते हैं.

जानें मंदिर का इतिहास

यह शिव मंदिर 200 से अधिक सालों पुराना है. दंत कथाओं और मंदिर के उप पुजारी शिव गिरी के अनुसार इस मंदिर की स्थापना कुछ इस तरह हुई कि बिशुनपुर टनटनवा के निवासी पाले आरख फावड़े से अपने खेतों की गुढ़ाई कर रहे थे. अचानक एक पत्थर पर उनका फावड़ा पड़ गया. फावड़ा लगने से खून की धार बहने लगी. वह खेत से भाग कर अपने घर पहुंचे और परिवार वालों को पूरी घटना बताई.

उसी रात भगवान शिव ने उनको एक सपना दिखाया और कहा कि उसी स्थान के नीचे सोने की अशर्फियों के 5 गागर गड़े हुए हैं. उसे निकाल कर उसी जगह पर मंदिर का निर्माण करो. पाले आरख ने अशरफियां निकाल कर वहां पर शिव मंदिर का निर्माण करवाया. मंदिर में वही शिवलिंग आज भी स्थापित है. जिस पर फावड़ा लगने का बाद खून निकला था. इस शिवलिंग पर आज भी फावड़े का निशान साफ-साफ देखा जा सकता है. मंदिर के बगल में ही पार्वती मां का भी भव्य मंदिर बनवाया गया है.

मंदिर न केवल सैकड़ों साल पुराना है, बल्कि यहां पर देश की तमाम जगहों से श्रद्धालु आते हैं. यहां पर सच्चे दिल से जो भी अपनी मन्नतें मांगता है. उसे भगवान शिव अवश्य पूरा करते हैं. सावन महीने में यह मंदिर आस्था का प्रतीक है. यहां पर मेला सा लगा रहता है.

-दिलीप सिंह, वरिष्ठ पत्रकार

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