बलरामपुर:पहले से ही शिक्षकों की कमी से जूझ रहा बेसिक शिक्षा विभाग अपने ही खेल में फंसता नजर आ रहा है. जिले में कुल 2,235 प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय हैं, जिनमें सवा दो लाख से अधिक बच्चे पढ़ाई करते हैं. इन्हें पढ़ाने के लिए कुल 6,100 अध्यापक, शिक्षामित्र और अनुदेशक तैनात हैं, जबकि नियमानुसार प्रति 30 बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए.
इस भारी-भरकम कमी से जूझने के बावजूद भी बेसिक शिक्षा विभाग के खंड शिक्षा अधिकारी और जिला बेसिक शिक्षा कार्यालय के अधिकारियों के खेल के कारण शिक्षक खैरात में चिकित्सीय अवकाश लेकर अपने स्कूलों से महीनों तक गायब रहते हैं. इन्हें न तो कोई पूछने वाला है और न ही कोई जांच करने वाला. ऐसे में विद्यालय की पूरी व्यवस्था ही चरमराई रहती है.
महीनों तक स्कूलों से गायब रहते हैं शिक्षक
जिले के दूरदराज इलाकों में आने वाले गैंडास बुजुर्ग शिक्षा क्षेत्र के अंतर्गत एक परिषदीय विद्यालय बलुआ जंगली में बना हुआ है. इस विद्यालय में कहने को तो एक शिक्षामित्र और एक अध्यापक तैनात हैं, लेकिन यहां पर तैनात अध्यापक पिछले कई महीनों से चिकित्सीय अवकाश पर चल रहे हैं. इसके बाद अभी एक अगस्त से वह बिना बताए छुट्टी पर हैं. ऐसे में स्कूल की सारी जिम्मेदारी यहां पर तैनात शिक्षामित्र राजकुमार निभा रहे हैं. वही स्कूल खोलते हैं और बंद करते हैं.
बच्चे भी कम आते हैं स्कूल
कहने को तो यहां पर 48 बच्चे पढ़ाई करते हैं, लेकिन बच्चों की अनुपस्थिति न के बराबर ही होती है, जबकि इस गांव की आबादी तकरीबन 300 है. इस विद्यालय में बच्चों को न तो अब तक यूनिफॉर्म बांटा जा सका है और न ही इन्हें मिड डे मील की सुविधा उपलब्ध हो पाती है. मिड डे मील न मिलने का कारण यह बताया जाता है कि यहां पर तैनात रसोइया कई दिनों से बीमार चल रही हैं. बच्चे अपने घरों से खाना खाकर आते हैं और फिर घर जाकर ही भोजन करते हैं.
महीनों से बच्चों को नहीं मिला फल और दूध
वहीं बच्चों ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा कि हमें फल और दूध कई महीनों से नहीं मिला है. प्रभारी अध्यापक आते ही नहीं हैं. वहीं अगर विद्यालय के भवन की स्थिति की बात की जाय तो विद्यालय तक पहुंचने के लिए कीचड़ भरे रास्तों से गुजरना पड़ता है. भवन को कायाकल्प योजना के तहत अभी तक सही नहीं करवाया जा सका है. भवन के फर्श टूटे हुए हैं और दीवारें डगमगा रही हैं. यहां पर खेल-कूद की न तो बेहतर व्यवस्था है और न ही अभी तक पुस्तकालय स्थापित किया जा सका है. विद्यालय अकेले शिक्षामित्र के बदौलत चलने के कारण पूरी तरह से अस्त-व्यस्त नजर आता है.
...न ड्रेस मिला और न ही किताबें, पढ़े तो पढ़ें कैसे
इसी विद्यालय में पढ़ने वाली कक्षा दो की छात्रा काजल ने कहा कि हमें न तो ड्रेस मिली है और न ही अभी तक पूरी किताबें मिल सकी हैं. बस्ता भी नहीं मिला है. केवल जूता पहनने के लिए मिला है.