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बलरामपुर: पराली से प्रदूषण का कहर भर रहा है जिंदगी में जहर - बलरामपुर में पराली से प्रदूषण

उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में आबादी तकरीबन 25 लाख है. यहां पर तकरीबन 19 लाख लोग मतदान करते हैं, लेकिन इतनी बड़ी जनसंख्या होने के बावजूद जिले में प्रदूषण संबंधित जानकारियां जुटाने की कोई व्यवस्था तक नहीं है. जिले का एयर क्वालिटी इंडेक्स क्या है? यह न तो आला-अधिकारियों को पता है और न ही आमजन को.

बलरामपुर में पराली से प्रदूषण.

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Published : Nov 17, 2019, 11:39 PM IST

बलरामपुर:जिले के तहत 4 नगरीय निकाय आते हैं. 101 न्याय पंचायत और 801 ग्राम सभाएं हैं. जिले में पर्यावरण और प्रदूषण से संबंधित मामलों को देखने के लिए जिलाधिकारी की अध्यक्षता में पर्यावरणीय समिति भी गठित की गई है. इस समिति का हर माह के पहले सप्ताह में बैठक भी होती है, लेकिन लोगों को प्रदूषण की समस्याओं से निजात नहीं मिल पा रही है.

देखें विशेष रिपोर्ट.


कृषि प्रधान जिला होने के कारण बलरामपुर में तकरीबन 2,10,000 किसान पंजीकृत हैं. यहां मुख्य तौर पर धान, गेहूं और गन्ने की खेती की जाती है, जिससे न केवल बड़े पैमाने पर पराली उत्पन्न होती है बल्कि इस पराली को जलाने के कारण बड़े पैमाने पर प्रदूषण भी उत्पन्न होता है, जो हवा में घुलकर लोगों के जीवन से खिलवाड़ कर रहा है, लेकिन अधिकारियों को इसकी भनक तक नहीं है.


पराली जलाने से रोकने के लिए कृषि विभाग लगातार काम करने का दावा तो कर रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत बिल्कुल ही अलग है. बलरामपुर जिले के सभी इलाकों में बड़े पैमाने पर पराली जलाने की घटनाएं होती है, लेकिन अधिकारियों द्वारा इस वर्ष महज चार घटनाएं ही रजिस्टर की गई हैं.


कृषि विभाग द्वारा पराली जलाने पर किसानों पर बाकायदा जुर्माने का भी प्रावधान है. जिसमें 0 से 2 एकड़ तक 2000 रुपये, 3 से 5 एकड़ तक 5000 रुपये और इससे ऊपर 15000 रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है. लेकिन अधिकारियों द्वारा जब मामलों को रिपोर्ट ही नहीं किया जाता तो जुर्माना किस पर लगाया जाएगा.


वहीं कुछ किसानों का कहना है कि उनके पास गाय-भैंस है, इसलिए वे पराली नहीं जलाते. लेकिन आस-पड़ोस में रहने वाले किसान अपने खेतों की कटाई के बाद पराली इकट्ठा करके जला दिया करते हैं, जिसके चलते तमाम तरह की समस्याएं होती हैं.

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पराली से पैदा होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए कृषि विभाग की मदद ली जाती है. कृषि विभाग के साथ-साथ जिले के सभी उपजिलाधिकारियों और तहसील स्तर के अधिकारियों को यह आदेश भी दिया गया है कि वह पुलिस के साथ मिलकर पराली जलाने की घटनाओं पर रोक लगाए. किसानों को भी पराली न जलाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है.
-रजनीकांत मित्तल, प्रभागीय वनाधिकारी और सचिव, जिला पर्यावरण समिति

सिगरेट और पराली से निकलने वाला धुआं लगभग एक तरह का ही प्रभाव डालता है. पराली जलाने के कारण कई तरह की फेफड़े से जनित समस्याएं होती हैं, जो आगे चलकर बड़े रोग के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं. पराली के धुएं के कारण लोगों को अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, ट्यूबरक्लोसिस सीओपीडी, इनफाई सीमा जैसी बीमारियां हो सकती हैं.
-डॉ. सुमंत सिंह चौहान, एमओआईसी

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